Book Title: Shrutsagar 2016 04 Volume 02 11
Author(s): Hiren K Doshi
Publisher: Acharya Kailassagarsuri Gyanmandir Koba

View full book text
Previous | Next

Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org श्रुतसागर 20 जो दे देव जतीपणुं, तो देजे वानां च्यार विवेकी, सू(सु)कंठीनें सरूपता, पढवुनें गुरूप्यार विवेकी ॥११॥ बीजी ढाल कही भली, संबंध तणे अनुमान विवेकी, पुण्यें पुण्यनी योग्यता, पुण्यें पामे निधान विवेकी ॥१२॥ ॥दूहा॥ अनुक्रमें विहार करतां थकां, श्रीविजयसौभाग्यसूरि, शी(शि)णोर गाम रलीयामणुं, द्रव्ये घणुं भरपूर ॥१॥ संघ तणी जे विनती, अवधारे सूरींद, चातुर्मासक आवीया, जे मुनिवर में इंद ॥२॥ ।। देशी- रसीयानी ॥ विजयसौभाग्यसूरीश्वर देशना, जाणुं अमृतसमान सुग्यानी, विनय-विवेक श्रीसंघ घणो करे, देवे उचित दान सुग्यानी, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अप्रैल-२०१६ For Private and Personal Use Only सांभलीये.... सांभलीये.... भवियां सुण्यो श्रीगुरुनी कथा ॥१॥ नूतन शिष्यनें दीक्षा दीजीये, मन धारे तिहां सूरि सुग्यानी, सहु श्रावकनें गुरु कहे प्रेमथी, संघ कहे अमे छं हजूर सुग्यानी ॥२॥ संवत अढारचौद(१८१४) में जाणीये, महा सुद पंचमी शुक्र रे सुग्यानी, सुविधिविजय अभिधान ते शिष्यनुं, दीधुं गुरुजीये जे शक्र सुग्यानी ॥३॥ छीता वसनजीये वली भक्तिस्युं, दीक्षा-महोछव कीध सुग्यानी, वरघोडो कीधो भली भांतिस्युं, परभावना बहु दीध सुग्यानी ॥४॥ घरे घरे वारणां श्रीसंघ दीये भलां, ओछव कीधो रे सार सुग्यानी छीते सायें द्रव्य खरच्यो भलो, धन्य तेहनो अवतार सुग्यानी ॥५॥ एकदा समय श्रीगुरु मन चिंतवे, सुविधि सुविधिमें रम्य सुग्यानी, आचाराजपद देउं मुझ छता, तव संघ आवी प्रणम्य सुग्यानी ॥६॥ सुभ मुहु(हू)रत सुभ तीथि-नक्षत्र भलां, सुभ योग सुभ वार लीध सुग्यानी, सुभ चोघडीयां सुभ घटिका भली, मुहु(हू)रत चोकस कीध सुग्यानी ॥७॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36