Book Title: Shrungarmanjari
Author(s): Kanubhai V Sheth
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 19
________________ (८) उल्लेख कविओ अमनी दोघं कृति 'शृंगारमंजरी'मां आप्यो छे.१ ते अनुसार ते वृद्ध तपापक्षना 'रत्नाकर गच्छ'मां थई गया होय अन जगाय छे रत्नाकर गच्छ'ना उद्योतकर तरीके ते 'विजयरत्नरि'ने गणावे छे. आ विजयरत्नसूरि'ना शिष्य ते ख्यात 'धर्मरत्नसूरि'. आ 'धर्मरत्नसूरि'ना बे शिष्यो ते 'विद्यामंडनमूरि' अने ' विनयमान उपाध्याय '. आ 'विनय मंडन'ना बे शिष्योना - (ख) वडतपगच्छ सोहाकरु हो, श्रीविनयमंडन गुरु राय, रतनत्रय आराधका हो जे जगि धर्मसहाय ५५५ जे जगि धर्मसहाय गुणाकर, सुविहितिनइ धुरी कीध्ध, तस सीस गुणसोभ ग सुनामि जयवंतसूरि प्रसिद्ध ५४६ -ऋषिदत्ता रास, लींबडी हस्तप्रत, पृ. १९, ५४५-५४६ (ग) श्री विनयमंडन उवझाय अनोपम, तपगच्छ गयणइ चंद तमु सीस जयवंतसूरि, वरवाणी सुणतां हुइ आणंद. ७५ -पुण्यविजय हस्तप्रत ग्रंथभंडार, ला द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर, अमदावाद. प्रा क्रमांक २६५६. । गुर विनयमंडन उवज्झायो, जिन के नरवर सेवइ पाय, लघु सीस जयवंतसूरि गुण गाइ, थूलभद्र...सुख सवि थाइ. ६८ -स्थूलिभद्र चंदायणि ला. द. भा. स. विद्यामंदिर, हस्तप्रत ग्रंथभंडार, प्रत क्रमांक ३२६०, पृ. ३,६८ साधु शिरोमणी जणीउ तु, श्री विनयमंडन उवझाय रे, तास सीस गुण आगछु तु, बहु पंडित राय रे. ३६ आसे। सुदि पुनिम दिनइ तु, शुक्रवार ओकान्तई रे, कागल जयवंत पंडितइ तु, लिखीउ माझिम रातिइ रे. ३७ -सीमंधर स्वामि लेख. ला द. भा. सं. विद्यामंदिर ग्रंथभंडार, प्रत क्रमांक १००८ वडतपगच्छि अति महिमा मंदिर, श्री विनयमंडन उवजाय, तस सीस जयवंत पंडित. वीनवइ सुख संपद थिर थाइ. ३९ -बारभावना सज्झाय, पुण्यविजयजी हस्तप्रत ग्रंथभंडार, प्रतक्रमांक ६६८० (च) विनयमंडन गुरु सोसवर, जयवंतसूरि सुखदायो रे ४० राज० -शमामृतम्-नेमिनाथ स्तवन, संशोधक, मुनि धर्मविजयजी, भावनगर, १९२३ (इ) श्री विनयमंडन गुरोगिरि शिशुत्वे प्यवाप्तचारित्रा -काव्यप्रकाश टीका, जैन गूर्जर कविओ संपा. मोहनलाल द. देसाई, मुंबई, त्रीजो खंढ १, पृ. ६७२ १ वृद्धतपापक्ष जाणीइ, श्री रत्नाकर गछ कल्पलता जिम वाघती. दीसइ जिहां गुण गच्छ. २४०५ वगेरे... -जुओ, शृंगारमंजरी ग्रंथपाठ पृ १७६-१७७, २४१८-२४१८ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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