Book Title: Shrungarmanjari
Author(s): Kanubhai V Sheth
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 21
________________ (१०) जयवंतसूरिना अंगत जीवन अंगे कोई विशेष माहिती सांपडती नथी. एमनुं अपर नाम 'गुणसौभाग्यसूरि' अमना गुरु ते विनयमंडन आ विनय मंडने 'शत्रुंजयतीर्थ' ना 'उद्वार' मां सारो रस लोघो छे. आ विनय मंडनना बे शिष्यो ते 'विवेकमंडन' अने 'जयवंत' भेटले आ प्रसंगे ते बन्ने हाजर हशे अम अनुमान करी शकाय आ सिवाय ओमनी कृतिओमांथी सांपडता उल्लेखो परथी 'पंडित जयवंत ने पाछळथी 'सूरि'नी पदवी मळी हती, ओम कही शकाय . समय जयवंत सूरिन । जन्म के मरण अंगे कोई चोक्कस माहिती मळती नथी. पण ओमनी उपलब्ध कृतिओमांथी प्राप्त थती रचनासाल परथी अमना जीवन कवन काळ विशे अनुमान करी शकाय ओम छे, ओमणे रचेली कृति 'सीमंधर स्तवन'नी प्रशस्तिमां' प्राप्त थती विगतो परथी तेनी रचना साल संवत १५९९ निर्णित करी शकाय ओम छे. आ स्वीकारता ते कविनी रचना साल आपेली पहेल प्रथम कृति ठरे छे. जेथी संवत १५९९ ते अमना कवननी पूर्व मर्यादा गणावी शकाय. अमणे रचेली कृतिमांथी मोडामां माडी कृति ते 'ऋषिदत्ता रास' छे. जेनी रचनासाल संवव १६४३ छे. तेने आपणे ओमनी उत्तर मर्यादा तरीके मूकी शकीओ. [हाल प्राप्त कृतिओना संदर्भमां आ अनुमानो छे, ते नांध जोईओ ]. आम एमनो कवनकाळ संवत १५९९ थी संवत १६४३ ना [ई.स. १५४३ थी १५८७ नो] गणावी शकाय. आ परथी एमना जीवनकाल विषे पण अनुमान करी शकाय छे. श्री. मोहनलाल द. देसाई २ पण संवत १६४३ ने कविना कवननी उत्तर मर्यादा तरीके स्वीकारे छे. अने जगावे छे के "आपणा कविए [ जयवंतसूरिए ] पाछळथी 'सूरि'नी पदवी प्राप्त करेली जणाय छे. संवत १५८७मां [ई.स. १५३१मां] 'शंत्रुंजयोद्धार' वखते २० वर्षनी उमर ओछामां ओछी गणीए अने संवत १६४३ (ई.स १५८७]नी एमनी कृति मळी आवे छे ते परथी ते ओछामां ओकुं ७६ वर्ष जीव्या जणाय छे२, उपरनी हकीकत स्वीकारी शकाय तेम छे. एमनी उपलब्ध कृतिओमांथी तेमने क्यारे सूरिपद प्राप्त थयुं हशे, ते अंगे अनुमान करी शकाय तेम छे. एमनी उपलब्ध कृतिमांथी 'नेमिनाथ-- राजीमती बारमास वेलप्रबंध' के जेनी रचना संवत १६१४ निर्णीत करवामां आवी छे. तेमां सर्वप्रथम तेमनेा १. 'सीमंधर स्तवन'नी प्रशस्ति आ प्रमाणे मळे छे : आसो सुदि पूनिम दीनइ तु, शुक्रवार एकांति रे, कागल जवंत पंडिततइ तु, लिखीउ माझिम रांतइ रे. ३९ -ला. द. हस्तप्रत ग्रंथभंडार, प्रत क्रमांक १००८. आ परथी ज्योतिषशास्त्र प्रमाणे गणतरी करता 'आसा' मासमां 'सुदि पूनम'ने दिवसे 'शुक्रवार होय सेवा योग विक्रम संवत १५९९मां आवे छे. २. जैन गूर्जर कविओ संपा. मो. ह. देसाई, मुंबई, १९२६, प्रथम भाग, पादनांध, पृ. १९६० ३. शृंगारमंजरी'नी प्रशस्ति आ प्रमाणे मळे छे. Jain Education International संवत सोल चौदातरइ, आसेा सुदि गुरु बीज, कवि कीधी शृंगारमंजरी, जयवंत पंडित हेज २४२४. For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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