Book Title: Shrungarmanjari
Author(s): Kanubhai V Sheth
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 16
________________ लेखननी विशिष्टताओ : १. पदान्ते अनुनासिक-पुहचई, कीज इ, वघारइ, वखाणइ', बारम३. २. आराम, कामिनी, वेदपुराणि, अभिरामजी. ३. "य" कारवाला शब्दा-करीय, मोहय, वाहणीय, वारीय, सारीय, लावीय. ४. हुओ, छांवीओ, हिलहओ, बहओ. ५. सांडडडु, निनिंदंति, दडिदीण. प्रत-घ प्रस्तुत प्रत पंडित वीरविजय उपाश्रय, अमदावादना भंडारमाथी प्राप्त थई छे. जेमां ते डाबडा १७. प्रतक्रमांक ४१९ तरीके नेांधायेली छे. आ प्रत अधरी छे. अमां कुले ७३-१५ पानां मळे छे. पानानु सामान्य मा ९.९x४.४ 'नु पत्रनी डाबी अने जमणी बाजुओ १"ने। हांसियो छे. पत्रनी उपर नीचे ०.५" जग्या कारी राखवामां आवी छे. पानानी उलटी बाजुओ डाबी बाजु पर काळी शाही बडे पृष्टांक दर्शाव्या छे. आखीय कृति देवनागरी लिपियां मध्यम कदना अक्षरामां काळी शाहीथी लखायेली छे. पंक्ति भेद माटे दंडनो प्रयोग को नयी. सीधा ज लोकांक मूकया छ, अने तेने लाल बनाव्या छे. राग के ढालनी प्रथम पंक्तिने लाल बताववामां आवी छे, काचित बाजु पर हांसियामा अर्थ दशांवता शब्द। लखेला मळे छे. प्रथम पृष्ट पर मथाळे "शंगारमंजरी चुपई" अम लखेलं छे. आ प्रतना छेल्ला चारेक पुष्ठ खेविाइ गयेला लागे छे. अटले अना लेखनसमय अंगे काई माहिती मली नथी. आरंभ : दुहा० चंदवदनि चंक्वती. लेखननी विशिष्टताओ : १. पदान्ते "इ"कार सानुनासिक सेोभागि, दिसिं, कमलनि, अनुभाविं, आका सिं. २. "झ"ने बदले घणु खर "ज" जीणउ, जमकार, जिलहल. ३. घणू अ, नीअम, निअमनि, रसिअ, नहींअ. संपादन पद्धति पलब्ध हस्तप्रतोमाथी भाषा, समय के लखावटनी प्राचीनताना धारणे प्राचीनतम ठरावी शकाय अवी प्रत 'क'ने अहीं मुख्य प्रत गणी छे, अने संपादित ग्रंथपाठ अने आधारे तैयार को छे. आ सिवायनी अन्य प्रतनां पाठांतरो नेांध्या छे. आ पाठांतरानी नेांधणी मुख्य प्रत 'क' नी कडी अने पंक्तिना क्रमानुसार करी छे. संदर्भ माटे आवश्यक होय अवा अपवादा सिवाय अन्य प्रतामां मळता वधाराना शब्दो पंक्ति के कडीने संपादित ग्रंथपाठमां स्थान आपवामां आव्यु नथी. मुख्ज प्रत 'क'नी. अंदर मळती कडीओ. अन्य कोई पण प्रतमां न मळी आवती Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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