Book Title: Shravak Pragnpti
Author(s): Rajendravijay
Publisher: Sanskar Sahitya Sadan

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Page 9
________________ [4] सटीकश्रावकप्रज्ञप्त्याख्यप्रकरणं / प्रतिदिवसं यतिभ्यः सकाशात्साधूनामगारिणां च सामाचारी शृणोतीति श्रावकः इति / सांप्रतं श्रवणगुणान् प्रतिपादयतिनवनवसंवेगो खलु नाणावरणखओवसमभावो / तत्ताहिगमो यतहा जिणवयणायनणस्स गुणा // 3 // [ नवनवसंवेगः खलु . ज्ञानावरणक्षयोपशमभावः / तत्त्वाधिगमश्च तथा जिनवचनाकर्णमस्य गुणाः॥३॥] नवनवसंवेगः प्रत्यग्रः प्रत्यग्रः संवेगः आर्द्रातःकरणता मोक्षसुखाभिलाष इत्यन्ये / खलुशब्दः पूरणार्थः संवेगस्य शेषगुणनिबंधनत्वेन प्राधान्यख्यापनार्थों वा। तथा ज्ञानावरणक्षयोपशमभावः ज्ञानावरणक्षयोपशमसत्ता संवेगादेव / तत्वाधिगमश्च तत्वातत्त्वपरिच्छेदश्च तथा जिनवचनाकर्णनस्य तीर्थकरभाषितश्रवणस्यैते गुणा इति // तीर्थकरभाषिता चासो सामाचारीति // किं च देहस्वजनवित्तप्रतिबद्धः कश्चिदहृदयो न शृणोतीत्येषामसारताख्यापनाय जिनवचनश्रवणस्य सारतामुपदशयन्नाहनवितं करेइ देहो न य सयणो नेय वित्तसंघाओ। जिणवयणसवणजणिया जं संवेगाइयां लोए॥४॥

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