Book Title: Shravak Pragnpti
Author(s): Rajendravijay
Publisher: Sanskar Sahitya Sadan

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Page 13
________________ [8] सटीकश्रावकप्रज्ञप्त्याख्यप्रकरणं / [यतो जीवकर्मयोगे युज्यते एतदतः तकं पूर्वम् / वक्ष्ये ततः क्रमेण पश्चात् त्रिविधमपि सम्यक्त्वम् // 8 // ] यतो यस्मात्कारणाज्जीवकर्मयोगे जीवकर्मसंबन्धे सति युज्यते एतत् घटते इदं सम्यक्त्वं कर्मक्षयोपशमादिरूपत्वात् अतोऽस्मात्कारणातकं जीवकर्मयोगं पूर्वमादौ वक्ष्येऽभिधास्ये / ततस्तदुत्तरकालं क्रमेण परिपाट्या पश्चात्रिविधमपि क्षायोपशमिकादि सम्यक्त्वं वक्ष्य इति // तत्राहजीवो अणाइनिहणो नाणावरणाइकम्मसंजुत्तो। मिच्छत्ताइनिमित्तं कम्मं पुण होइ अट्ठविहं॥९॥ [जीवो ऽनादिनिधनो ज्ञानावरणादिकर्मसंयुक्तः / मिथ्यात्वादिनिमित्तं कर्म पुनर्भवत्यष्टविधम् // 9 // ] _जीवतीति जीवः / असौ अनादिनिधनः अनाद्यपर्यवसित इत्यर्थः / स च ज्ञानावरणादिकर्मणा समेकीभावेनान्योन्यव्याप्त्या युक्त संबद्धो ज्ञानावरणादिकर्मसंयुक्तः। मिथ्यात्वादिनिमित्तं मिथ्यात्वादिकारणं मिथ्यादर्शनाविरतिप्रमादकषाययोगा बन्धहेतव इति वचनात् (तत्वार्थाधिगमसूत्रम् 8-1) कर्म पुनर्ज्ञानावरणादि भवत्यष्टविधमष्टप्रकारमिति // तथा चाहपढमं नाणावरणं बीयं पुण होइ दंसणावरणं / तइयं च वेयणीयं तहा चउत्थं च मोहणियं // 10 //

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