Book Title: Shraddhvidhi Prakaranam Bhashantar
Author(s): Jayanandvijay
Publisher: Jayanandvijay

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Page 3
________________ दो शब्द पूज्य पाद श्री रत्नशेखर सूरीश्वरजी महाराज ने विक्रम संवत १५०६ में अर्थात् आज से ५५५ वर्ष पूर्व श्राद्धविधि प्रकरण ग्रंथ का आलेखन किया। इस ग्रंथ में श्रावक जीवन को समुज्ज्वल बनाने के विधि-विधानों का दृष्टान्त पूर्वक विवेचन किया है। ग्रन्थकार श्री ने श्राद्धप्रतिक्रमणवृत्ति अर्थदीपिका ग्रं. ३६४४ जो १४९६ में बनायी । १५०६ में श्राद्धविधिसूत्र मूलगाथा १७ और उस पर श्राद्धविधि कौमुदी टीका ६७६१ श्लोक प्रमाण बनायी । १५१६ में आचार प्रदीप ग्रन्थ ४०६५ श्लोक प्रमाण बनाया। लघुक्षेत्रसमास, हेमव्याकरणअवचुरि और प्रबोध चन्द्रोदय आदि ग्रन्थ बनाये हैं। 'जैन परंपरानो इतिहास' पृष्ठ २१५' इस ग्रन्थ में उस समय प्रचलित विधि-विधानों का जो आलेखन हुआ है उसको देखते हुए इन पांचसो वर्षों में विधि-विधानों में कितना योग्य-अयोग्य विधि-विधान जुड़ गये हैं । इस पर विद्वदूवर्ग को चिन्तनमनन करना चाहिए इस ग्रन्थ का भाषांतर जैनामृत समिति, उदयपुर से विक्रम सं. १६८७ में प्रकट हुआ था। उसमें कुछ भाषाकिय सुधारकर श्री गुरु रामचंद्र प्रकाशन समिति, भीनमाल (राज.) ने छपवाया है। पाठक गण लाभान्वित बनें यही .... २०६१, , पालिताना जयानन्द राजेन्द्र भवन, कार्तिक सुद ७ प्राप्ति स्थान : (१) शा देवीचंद छगनलालजी, सदर बाजार, भीनमाल - ३४३०२९ (२) श्री आदिनाथ राजेन्द्र जैन पेढी, साँधूं, ३४३०२६ (३) शा नागालालजी वजाजी खींवसरा शांतिविला अपार्टमेन्ट, तीन बत्ती, काजी का मैदान, गोपीपूरा, सूरत (४) महाविदेह भीनमाल धाम तलेटी हस्तगिरि लिंक रोड, पालीताणा - ३६४ २७०

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