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वस्तुकी पहछान पुस्तकों द्वारा होसकती है परन्तु पुस्तकोंका ध्येय वही आत्मज्ञानज्ञानकी हद, वही परम पद ।
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तत्त्वको समझा नहीं वहांतक ऊपर २ का ही सव एकटींग है ।
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जो सत्य है वह मेरा धर्म है, बहारकी तकलीफ क्या विशादमें ? अन्दरकी शांति बिना
फिजूल है ।
विवेकानन्द यह पंडित थे और स्वाभिराम यह जवरदस्त आत्मार्थि थे ।
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प्रवृत्तिसे निवृती लो याने निवृतिमय प्रवृत्ति करो ।
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बन सके तो अपने जीवनसे और अन्तमें अपने विचारोंसे दूसरोंको पवित्र करो ।
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महानुभाव मुझको जिसकी आवश्यक्ता है वह तेरे पास नहीं है और तुम कृपाकर मुझे देना चाहते हो उसकी मुझे परवा नहीं ।
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विश्व मेरा मित्र है और मैं सबका मित्र हूं ।
मैं त्यागी हूं यह भावनाका त्याग ही सच्चा त्याग कहा जासक्ता है । शांतिमय जीवन यही सत्य जीवन है एकांत में आनन्द है । ॐ अर्हममें परम सुख है ।
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जैनों का जीवन ऐसा है कि जिसकी देवता भी यात्रा करने आयें, ऐसा जीवन जीओ ।
भांग पीए हुए मनुष्य का जैसे छाश पानेसे नशा उतरता है वैसे ही इस संसार में संसारकी भावना से भीगी हुई आत्माको शुद्ध करनेको ॐकार मंत्र जापकी जरूरत है । उससे आत्माका वातावरण शुद्ध होता है सर्व आत्माको शुद्ध करनेको मथो ।