Book Title: Shantivijay Jivan Charitra Omkar
Author(s): Achalmal Sohanmal Modi
Publisher: Achalmal Sohanmal Modi

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Page 18
________________ [१५] माचारके अनुकूल जनताको उच्च स्थानपर पहुंचानेवाले मार्गदर्शक याने आचार्यके पदका स्वीकार करना होता है । आचार्यके नाते अपने कर्तव्य कर्म, जो पूरे पूरे किये करते हैं वे ही फिर अहेतु-जगतपूज्यके पदपर, वह आत्मा, पहुंच सकता है और अन्तमें परमात्मा दशा स्वरूप सिद्ध स्वरूपमें विलीन हो जाती है । इस प्रकार पंच परमेष्टीपदमें अध्यात्मिक विकास क्रमका जो विचार तत्त्व गर्भितरूपमें रहा है, उसका इस ॐकी आकृतिमें सूचन किया गया है। ॐकारमें क्या क्या सूचित होता है। ॐकार तीनों लोकका बीज है । ॐकार पंचपरमेष्टी है और उसीमें अरिहंत, सिध, आचार्य उपाध्याय और सबके सब साधु हैं। ॐकारको हरेक धर्मानुयायि मुख्य मानते है । कोई ॐ कहते हैं तो कोई आमीन - और आमेन कहकर पुकारते हैं। ॐकार सभी मंगलोंमें प्रथम मंगल है । शांतिको देनेवाला है इसका ध्यान करनेसे रोग, शोक, क्लेश, आधि, व्याधि और उपाधि आदिकका नाश होता है और मुक्ति प्राप्त होती है। ॐकार तीनों लोकोंका एक नकशा है जिस प्रकार एक ही नक्शेमें समूचे संसारका समावेश होजाता है उसी प्रकार इस ॐकारमें तीनों लोकका समावेश होजाता है । अतएव हरएक प्राणीको ॐकारका ध्यान करना चाहिए । ॐकारके महात्म्यपर एक कथा । : एकवार मालवपति महाराजा भोजराजने अपने ५०० पंडितोंसे कहा कि-'मेरी आयु तो थोड़ी है, कर्म तो अनादिकालसे लगे हुए हैं । अतएव यह अनादिकालके कर्म थोड़े ही समयमें नष्ट होजायें, इसका उपाय क्या है ? और वह देववाणीमें मिल आवे, ऐसी तजवीज यदि आप लोग कर सकें तो हमारी आर्त आत्माको अत्यन्त आनन्दका अनुपम एवं अद्वितीय अनुभव हो।" राजाकी यह बात सुनकर महाकवि माघ तथा कालिदासने देवी सरस्वतीका ध्यान किया तब सरस्वतीदेवीने २००० पुस्तकोंसे लदे हुए बैल दिखाए । तब कवि कालिदासने पूछा कि - माता ! इन बैलों पर क्या लदा हुआ है।'

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