Book Title: Shantivijay Jivan Charitra Omkar
Author(s): Achalmal Sohanmal Modi
Publisher: Achalmal Sohanmal Modi

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ [१४] इसमें जो पांच बिन्दु हैं, वे पांचों बिन्दु परमेष्ठीके पांच स्थानोंके सूचक हैं । चंद्रलेखाके ऊपर जो बिन्दु है वह सिद्धोंका स्थान हैं। चंद्रकलागत बिन्दु अरिहंतका स्थान है ! उसके नीचेका बिन्दु आचार्यकारस्थान है । मध्य रेखाका बिन्दु उपाध्यायका स्थान सूचित करता है और निम्नरेखागत बिन्दु साधुके स्थानका दर्शक है। सिद्ध संसारके सर्वोच्च स्थानपर परम शून्यमें विलीन हुए हैं । अर्हत् संसारमें अलिप्त ऐसे ऊर्ध्व अध्यात्मिक आकाशमें विराजमान हैं और वह अपने तेजसे पृथ्वीतलको प्रकाशित करता है। ज्ञानामृतकी शीतल किरणोंसे उत्तम हुई आत्माओंको अन्तरात्माओंको शांत करता है । सदाचारके उपदेष्टा आचार्य, तत्त्वज्ञानी जनताके अग्रभागमें हैं और वे अपने आदर्श आचारों एवं विचारोंसे जनताको सन्मार्गपर, चलाते हैं । सम्यग्ज्ञानके अध्यापक उपाध्याय जनताके बीचमें रहकर निष्काम भावसे उसे अपने ज्ञानका अक्षय ज्ञानदान करते हैं। स्वपरके कल्याणकी साधनामें तल्लीन हुए साधु-पुरुष-संतजन एकांत स्थानमें रहकर अपने साधु स्वभावसे संसारको नीचेसे ऊपरको चढ़ानेके लिये अदृश्य प्रेरणाकी शक्ति प्रदान करते रहते हैं । इस प्रकार इन पांच स्थानोंका सूक्ष्म रहस्य है। इसका दूसरा क्रम । ॐकारके इस सूक्ष्म-रहस्यको दूसरे क्रमसे भी बताया जा सकता है और वह इस प्रकार है: सर्वोच्च और सर्वोत्कृष्ट स्थान प्राप्त करनेवाली मुमुक्षु आत्मा कौनसे क्रमसे उत्क्रान्तिके सोपानपर आरूढ़ होकर उच्चपद प्राप्त करती जाती है उसका भी ॐकारकी इस आकृतिमें सूक्ष्म सूचन रहा हुआ है । मुक्ति प्राप्त करनेके अभिलाषियोंको सबसे पहले साधु याने साधक होना पड़ता है। साधक अवस्थामें रहते हुए अमुक एक प्रकारकी संसारका कल्याण करनेवाली भावनाओंको मुसंस्कृत बनाकर फिर उसे जनताका अध्यापक बनना होता है । अर्थात् सम्यज्ञानका अध्ययन करानेवाला अध्यापक का पद गृहण करना पड़ता है। इस प्रकार जनताके शिक्षा प्रदान करते हुए आनेको जो कुछ विशेष अनुभव प्राप्त होनाय, मनकत्याग का जो सत्य मार्ग सूझ पड़े, तदनुसार फिर उसे माने

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28