Book Title: Shantivijay Jivan Charitra Omkar
Author(s): Achalmal Sohanmal Modi
Publisher: Achalmal Sohanmal Modi

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Page 15
________________ [RR] त्मिक भीक्षा प्रदान करता है। हृदयकी धड़कनके जैसे यह निरंतर योगीजनोंके अंतःकरणमै स्फुरायमान होता है । निम्नलिखित श्लोक के स्थूल स्वरूपका यथार्थ वर्णन बताता है- ॐकार बिन्दुसंयुक्तं नित्यं ध्यायन्ति योगिनः । कामदं मोक्षदं चैव ॐकाराय नमो नमः ॥ अर्थ - बिन्दु संयुक्त जो ॐ हैं, वह सब काम तथा मोक्ष देनेवाला है । इसीसे योगीअन इसीका ध्यान करते रहते है और इसीका वंदन ( नमस्कार ) किया करते हैं । ज्ञानार्णव शास्त्र कर्ता श्री शुभचन्द्राचार्य अपने ग्रन्थ में ३८वें प्रकरणमें इस प्रणवाक्षरका महात्म्यका वर्णन करते हुए लिखते हैं कि: स्मरदुःखानलज्वाला प्रशान्तेर्नवनीरदम् । प्रणवं वाङ्मयज्ञानप्रदीपं पुण्यशासनम् ॥ अर्थ :- हे मुने । तु प्रणव नामक अक्षरका स्मरण कर । कारण कि यह प्रणवाक्षर दुःखरूपी अग्निकी ज्वालाको शान्त करनेके लिए नए मेघोंके समान है । तथा वाङ्गमय याने शास्त्रिय - ज्ञानको प्रकाशित करनेके लिये प्रदीप है और पुण्यका पवित्र शासन है । यस्माच्छब्दात्मकं ज्योतिः प्रसूतमतिनिर्मलम् । वाच्य - वाचकसम्बन्धस्तेनैव परमेष्ठिनः ॥ अर्थ - इस प्रणवाक्षरसे ही अतिशय निर्मल ऐसी ज्योति याने ज्ञानशक्ति उत्पन्न हुई है । इसीसे इसका परमेष्टीके साथ वाच्य वाचक सम्बन्ध है । इसका वाच्य है परमेष्टी और यह है परमेष्टीका वाचक | ॐका चिंतन किस प्रकारसे करना । हृत्कंजकर्णिकासीनं स्वरव्यंजनवेष्टितम् । स्फीतमसंतदुर्धर्ष देवदैत्येन्द्रपूजितमः ॥ प्रक्षरन्मूध्निसंक्रान्तचंद्रलेखामृतप्लुतम् । महाप्रभावसम्पन्नं कर्मकक्ष हुताशनम् ॥ महातत्त्वं महाबीजं महामंत्रं महत्पदम् । शरश्चंद्रनिमंध्यानी कुम्भकेन विचिन्तयेत् । अर्थ - ध्यान करनेवाले संयमीको, हृदयकमलकी कर्णिकामें विराजमान, स्वर और व्यंजनोंसे परिवेष्टित, उज्वलाकार, अत्यन्त दुर्धर्ष, देवताओं, असुरों, इन्द्र द्वारा पुजित, सिरपर

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