Book Title: Shakahar Vaigyanik evam Chikitsashastriya Drushtikona Author(s): Padmachandra Jain Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf View full book textPage 6
________________ का यह तर्क कि मांसाहार माँस तथा शक्ति की वृद्धि करता है, इसके कारण दिल की बीमारी हाई ब्लड होती है, भीखण्डित हुआ। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार। प्रेशर, गुर्दे की बीमारी, पित्त की थैली बीमारी में माँसाहार माँस तथा चर्बी बढ़ाकर मोटापे में वृद्धि पथरी और जोड़ों में दर्द हो जाता है। अवश्य करता है, परन्तु शक्ति या स्फूर्ति में नहीं। माँसाहार से स्फूर्ति या ओज प्रकट नहीं होता, यही कृषि विभाग, फ्लोरिडा (अमेरिका) ने अपने हैल्थ कारण है कि घायल, बीमार, अशक्त, गभिणी अथवा बुलेटिन (अक्टूबर 1967) में प्रकाशित शोध प्रतिवेदन प्रसूता को माँसाहार निषिद्ध रहता है और उसे दूध, (रिसर्च रिपोर्ट) में कहा है कि -18 माह के परीफलों का रस तथा हल्का शाकाहारी भोजन दिया क्षण के बाद 30 प्रतिशत अण्डों में डी. डी. टी. जाता है। नामक विष पाया गया।' डा. जे. एम. विलकिस ने लिखा है-“अण्डे की सफेदजरदी मुख्यतया अलवुचिकित्सा शास्त्रीय अनुसंधानों में प्रत्येक आहार मिन ही है, जो कि प्रोटीन की एक किस्म ही है। शरीर को सक्ष्मतम बारीकियों की जाँच कर जो तथ्य प्रकाश अलवमिन को नष्ट तत्व के रूप में बाहर निकालता में आए हैं उनसे यह स्पष्ट है कि विभिन्न मांसाहारी है। अण्डे का पीला भाग कोलेस्टरौल नामक पदार्थ वस्तुएं मानव शरीर के लिये अत्यधिक घातक हैं। अपने अन्दर रखता है जो कि एक प्रकार की चिपचिपी मानवीय आहार की चर्चा करते समय विभिन्न मांसा शराब है जो यकृत और खून की रगों में जमा हो हारी वस्तुओं के इस पक्ष पर भी विचार करना जाता है और खून की धमनियों (रगों) में जमा हो आवश्यक है। जाता है तथा खून की धमनियों (रगों) में जख्म और कड़ापन पैदा कर देता है।" डा. इ. व. मैककोलम ने जब बन्दरों को अण्डों पर ही रखा तो उनमें सड़ानेवाले आजकल कुछ लोग अण्डा का निजाव बताकर उस कीटाणु अधिक होने लगे और वे सुस्त हो गए, उनके शाकाहार के अन्तर्गत बताकर शाकाहारियों को उनके पेशाब की मात्रा कम और रंग गहरा हो गया । जब उपयोग का तर्क देने लगे हैं, या यों कहें कि कुछ शाका- उन्हें दूध व अंगर की शर्करा दी गई तो मानसिक व द्वारी अण्डों के उपयोग को उपरोक्त तक से सिद्ध कर शारीरिक दोनों परिवर्तन उनमें पूनः लौट आए और बे दसरों को भी अण्डे खाने की सलाह देने लगे हैं और इस ठीक हो गए। उन्होंने अपने अनुसंधान के आधार पर प्रकार इधर कुछ वर्षों में अण्डों का प्रयोग बढ़ा है, यह परिणाम निकाला कि अण्डों में चूने की कमी होती हैं परन्त वास्तविक रूप से यह तर्क निरर्थक है। मांस और उनमें शर्करा भी नहीं होती है। अतः अण्डों में और टुटी न होने के आधार पर अपडे के तरल को आंत के अन्दर सडाने की रुझान होती है बनिस्वत कि शाकाहार कहना मूर्खता ही है । यह कहनेवाले यह हाजमा दुरुस्त करने की । वे विषाक्त तत्वों को शरीर में जानकर भी कि-प्रत्येक जीव की उत्पत्ति तरल पदार्थ पैदा कर देते हैं और सूस्ती लाते हैं। से ही होती है, इस प्रकार का तर्क देते हैं, यह दुर्भाग्यपर्ण है। विगत अनुसंधानों ने यह सिद्ध किया है कि इंगलैण्ड के डा. राबर्ट ग्राम का लिखना है किअपडे की जरदी अण्डे का बड़ा खतरनाक भाग है। इसमें मुर्गी के बच्चे में बहुत-सी बीमारियाँ होती हैं । अण्डे कोलेस्टोल नामक भयानक विष एक चिकना एलकोहल उन बीमारियों को विशेषतया टी.बी., पेचिश आदि के होता है जो जिगर में पहुंचकर जमा होता है और कीटाणुओं को अपने साथ लाते हैं और इनको खानेहृदय से रक्त ले जानेवाली नाड़ियों में रुकावट पैदा वालों में पैदा कर देते हैं।" डा. ह. बी. मैवलिस ने अण्डे २६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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