Book Title: Shakahar Vaigyanik evam Chikitsashastriya Drushtikona Author(s): Padmachandra Jain Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf View full book textPage 8
________________ विकास हो सकता है। जो पुरुष मुग की दुकानों में निष्कर्ष काम करते हैं और मुर्गे की गर्दन खाते हैं उनके स्तनों इस प्रकार जहाँ प्राकृतिक दार्शनिक, सामाजिक में वृद्धि के लक्षण पाए गए हैं। एवं आर्थिक दृष्टिकोण से शाकाहार ही उचित एवं आवश्यक मानवीय आहार है वहाँ वैज्ञानिक एवं विभिन्न रोगों सम्बन्धी अनुसंधान चिकित्साशास्त्रीय दृष्टिकोण से भी शाकाहार ही विभिन्न रोगों के सम्बन्ध में किये गए अनुसंधानों सर्वाधिक उपयुक्त आहार है । शाकाहार जहाँ पूर्णाहार : में भी अधिकतर रोगों का कारण मांसाहार पाया गया होने के साथ-साथ पोषक, सुलभ, स्फूर्ति एवं शक्ति है। डा. आर. जे. विलियम्स एवं राबर्टग्रांस के अनुसार है वहाँ माँसाहार में मोटापा बढ़ाने के अतिरिक्त अन्य . अण्डे की सफेदी में एवीमान नामक भयानक तत्व कोई विशेष गुण नहीं हैं। उल्टे मांसाहार के कारण, पशु- - एक्जीमा उत्पन्न करता है । जिन जानवरों को अण्डे की पक्षियों के शरीर में पाये जानेवाले अनेक रोगाणु सफेदी खिलाई गई उन्हें लकवा मार गया और चमड़ी मानव शरीर में प्रवेश कर अनेकों विकार उत्पन्न करते. सूझ गई। डा. रोबर्ट ग्रांस व प्रो. इरविंग डेविडसन के हैं । यही कारण है कि चिकित्सा शास्त्रीयों के अनुसार-"एक अण्डे में लगभग 4 ग्रेन कोलेस्टरोल नवीनतम अनुसंधानों के आधार पर पश्चिमी देशों में की मात्रा पाई जाती है । इसकी अधिक मात्रा दिल जो विशेषकर माँसाहारी क्षेत्र हैं, वहाँ शाकाहार का की बीमारी, हाईव्लड प्रेशर, गुर्दो के रोग, पित्त की प्रबल प्रचार हो रहा है व मांसाहार के प्रति जनथैली में पथरी आदि रोगों को पैदा करते हैं। न्यूअर सामान्य को आगाह किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में कॉलेज आफ न्यूट्रिशन के डा. इ. वी. मेल्कालम के भारत जैसे देश में जहाँ की बड़ी संख्या शाकाहारी है, अनुसार अण्डों में कोर्बोहाइड्रेट्स बिल्कुल नहीं होते और पश्चिम के अन्धानुकरण के कारण माँसाहार का बढ़ता कैलशियम भी बहुत कम होता है, अतः इससे पेट में प्रयोगचिन्तनीय है, ऐसी दशा में आवश्यक है कि सड़न पैदा होती है। डा. रॉबर्ट ग्रांस ने कहा है कि लोगों को उनके आहार के सम्बन्ध में अधिकतम ज्ञान मुगियों में बहुत सी बीमारियां होती हैं, अण्डे उन दिया जाये ताकि वह उचित-अनुचित का निर्णय कर बीमारियों को विशेषतया टी.बी. एवं पेचिश आदि को सकें, इसी उद्देश्य से इस लेख में संक्षिप्त में पाठकों को अपने साथ ले जाते हैं और इनको खानेवालों में पैदा उनके उचित आहार के बारे में तर्कसंगत जानकारी करते है। देने का प्रयास किया गया है। २६८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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