Book Title: Shakahar Vaigyanik evam Chikitsashastriya Drushtikona
Author(s): Padmachandra Jain
Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रत्येक प्राणी को सर्वाधिक प्रिय उसका जीवन है। | करनेवाले विभिन्न पक्ष क्या हैं ? इस प्रसंग पर वह जीना चाहता है, और मुख्यतः जीने के ही लिये | दार्शनिकों, और वैज्ञानिकों के विचारों के आधार पर या यथासंभव सुखी जीवन जीने के हो लिये अपने | निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि मनुष्य के जीवन के विविध उपक्रम करता है। कोई भी जीव आचरण को प्रभावित करनेवाला सर्वप्रमुख तत्व है, अनायास ही मरना नहीं चाहता । यही कारण है कि उसका आहार । मनुष्य का आहार, उसको बुद्धि, महापुरुषों और धर्मावतारों ने सभी को जीने के अधि- | विचार शक्ति, शारीरिक संरचना, व्यवहार और कार का समर्थन किया है। सभी महापुरुष हिंसा के संस्कारों पर अत्याधिक प्रभाव डालता है। यही कारण विरोधी रहे हैं, या यों भी कह सकते हैं कि ससार ने है कि दर्शनिकों ने इस पर तीब्र चितन और वैज्ञानिकों या मानव जाति ने उन्हीं को महापुरुष या धर्मावतार के ने गहन अनुसंधान किये हैं। उन्होंने मनुष्य के आहार रूप में मान्य किया है जिन्होंने हिंसा के कुचक्र से । को दो भागों में बांटा है-शाकाहार और दूसरा शाकाहार वैज्ञानिक एवं चिकित्साशास्त्रीय हटिकोण डा० पदमचन्द्र जैन निकलकर सभी जीवों के जीने के समान अधिकार का | माँसाहार । दार्शनिक और वैज्ञानिक दोनों दृष्टियों से समर्थन किया है, सुख और शान्ति का अहिंसक मार्ग | प्रथम प्रकार के आहार "शाकाहार" को मनुष्य का बताया है। सम्भवत: कोई भी धर्म या दर्शन ऐसा प्राकृतिक आहार माना जाता है, और मांसाहार को नहीं है, जिसमें जीव-हत्या या जीव भक्षण को उचित | अप्राकृतिक । इस प्रकार शाकाहार ही श्रेष्ठ आहार माना हो। सभी ने मनुष्य द्वारा हिसा को अप्राकृतिक माना गया है, इसकी श्रेष्ठता पर विचार करने के लिये माना है और प्राकृतिक रूप से जीने और दूसरों को जीने | इसके विभिन्न पक्षों पर विचार करना आवश्यक है - देने के लिये और उत्तम आचरण के लिये उपदेश दिये हैं । प्राकृतिक पक्ष जहाँ उत्तम आचरण की चर्चा आती है वहाँ हमारा प्राकृतिक दृष्टि से शाकाहार का पक्ष अत्याधिक ध्यान इस प्रसंग पर जाता है कि आचरण को निर्मित | सबल है । इसका सबसे बड़ा प्रमाण मनुप्य की शारी २६१ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रिक संरचना है। उसके मुह, दाँतों, हाथ की उंगलियों फोड़ डालो। हे अग्नि ! मांस भक्षण करनेवालों को एवं नाखूनों की बनावट के आधार पर प्रसिद्ध शरीर- अपने मुंह में रख लो।" अथर्ववेद, मनु स्मति और रचना शास्त्री एवं वैज्ञानिक उसे प्रण-कुशाचारी महाभारत में भी इसी प्रकार की धारणा व्यक्त की गई पशुओं की भाँति वनस्पत्याहारी अथवा शाकाहारी है। जैनागमों में कहा है-"किसी भी प्राणी का घात प्राणियों में गिनते हैं, माँसाहारी प्राणियों में नहीं। करना स्वयं अपना घात करना है। भोजन जिह्वा के लारेन्स, किंग्सफोर्ड, कुवियर, पॉशेट, वैशन, लिनियस स्वाद के लिये नहीं खाया जाता-शरीर की रक्षा के एवं लंकास्टर आदि अनेकों पाश्चात्य विशेषज्ञों का लिये खाया जाता है। मांस-भक्षण, मद्यपान, पशुमत है कि मात्र शाकाहार ही मनुष्य की प्रकृति पक्षियों का शिकार, चोरी, द्य त क्रीड़ा (जुआ खेलना) और उसकी शारीरिक संरचना के सर्वथा अनुकूल है। और व्यभिचार भारी पाप हैं जो मनुष्य की दुर्गति डा० अलेक्जेंडर हेग के अनुसार भेड़िया, चीता, सिंह करते हैं।" भगवान बुद्ध ने लंकावतार सूत्र में कहा आदि मांसाहारी पशुओं का पचनतंत्र मांसाहार को है--''माँसाहारी दूसरों के प्राणों को बलपूर्वक लेने के पचाकर विषाक्त द्रव्यों को शरीर से निष्कासित करने कारण डाकू समान हैं। जो व्यक्ति लोभवश दूसरों के को क्षमता रखता है, जबकि मनुष्य का पाचनतंत्र वसा प्राण हरते हैं तथा माँस के उत्पादन में धनादिक से योग नहीं कर सकता, न वह उस प्रकार मांस भोजन को देते हैं वे पापी हैं, दुष्ट हैं, घोर नरक में जाकर महाउपयुक्त रस-रक्त आदि सप्त धातुओं में भली प्रकार दुःख उठाते हैं। मैं मानता हूँ कि जो व्यक्ति दूसरे परिवर्तित कर सकता है। प्रो. लारेन्स ने मांसाहार के प्राणियों का मांस खाता है वह वास्तव में अपने पुत्र समर्थकों के इस तर्क का कि मांसाहारियों में शारीरिक का मांस खाता है।" बल और साहस अधिक होता है, खन्डन करते हुए कहा है कि -शाकाहार के साथ शारीरिक दौर्बल्य एवं ईसा मसीह ने कहा है-"देखो मैंने पृथ्वी पर सब कायरता का उतना ही कम सम्बन्ध है, जितना कि प्रकार की जड़ी-बूटियाँ तथा उनके बीज दिये हैं। साथ माँसाहार के साथ शारीरिक बल और साहस का। ही, तरह-तरह के फलों से लदे पेड़-पौधे भी दिये हैं वस्तुत: शाकाहारी की अपेक्षा माँसाहारी में सहनशक्ति, तथा उनके बीज भी। इन सब शाकाहारी पदार्थों को शौर्य और साहस कहीं अधिक कम होता है। पशु जगत खाओ। वे तुम्हारे लिये मांस से अधिक लाभप्रद हैं। तुम में हाथी, दरियाई घोड़ा, घोड़ा, ऊंट, गेंडा, बैल, महिष मेरे निकट सदैव एक पवित्र आत्मा बने रहोगे, यदि तुम आदि शुद्ध शाकाहारी जीव विश्व के विभिन्न मांसाहारी किसी का भी माँस न खाओ।" पैगम्बर मोहम्मद ने जीवों की अपेक्षा अत्यधिक शक्तिशाली, साहसी, भी कुरान शरीफ में कहा है--"किसी भी प्रकार का स्फूर्तियुक्त एवं दीर्घजीवी होते हैं । माँस ईश्वर को नहीं पहुँचता, न किमी का रत, ही। परन्तु जितनी कुछ दया पालोगे वही अल्लाताला को दार्शनिक पक्ष कबूल होगी।" हजरत अली ने और भी सशक्त रूप से कहा है कि - "हे इन्सान । पशु पक्षियों की दार्शनिक दृष्टि से तो शाकाहार का पक्ष और भी कब तु अपने पेट में मत बना।" गुरु नानक देव ने प्रबल है, विश्व के लगभग सभी दार्शनिकों एवं कहा हैमहापुरुषों ने शाकाहार का प्रबल समर्थन किया है। यही नहीं उसे जीवन में अपनाया भी है। ऋग्वेद में कहा "जे रक्त लगे कापड़े, जामे होवे पलित्त । है -- "हे मित्र ! जो पशु का मांस खाते हैं, उनका सिर जो रस पीवे मानुषा, तिन क्यों निर्मल चित्त ।।" २६२ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूफी सन्त अबुल अली ने एक प्रसंग में लिखा है - " कसाई को छुरी चलाते देख बकरी ने कहा- हरी घास खाने पर मुझे यह सजा मिल रही है, तब मेरा माँस खानेवाले कसाई का क्या हाल होगा ।" कबीरदास कहते हैं माँस अहारी मानवा, परतछ राक्षम अंग । तिनकी संगत मत करो, परत भजन में भंग ॥ जोरि कर जिबह करें, कहत करें हलाल । जब दफ्तर देखेगा दई, तब होगा कौन हवाल ॥ प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात, चाणक्य, जरयुक्त, पाइथागोरस, अफलातून (प्लेटो ), तिरककुरल, स्वामी दयानन्द सरस्वती स्वामी विवेकानन्द आदि ने शाकाहार का प्रबल समर्थन किया है । सम्राट अकबर ने तो बड़े ही कड़े शब्दों में कहा है- मेरे लिये कितने सुख की बात होती यदि मेरा शरीर इतना बड़ा होता कि माँसाहारी लोग केवल मेरे शरीर को ही खाकर सन्तुष्ट हो जाते, ताकि वे फिर दूसरों को मारकर न खाते । " विश्व के सभी प्रमुख साहित्यकारों, वैज्ञानिकों, विचारकों ने भी इस पक्ष में अपने सशक्त मत व्यक्त किये हैं । टालस्टाय ने कहा है- "माँस खाने से पाशविक प्रवृत्तियाँ बढ़ती हैं, काम उत्तेजित होता है, व्यभिचार करने और मदिरा पीने की इच्छा होती है । इन सब बातों के प्रमाण सच्चे शुद्ध और सदाचारी नवयुवक हैं । विशेषकर स्त्रियाँ और जवान लड़कियाँ हैं जो इस बात को साफ-साफ कहती हैं कि माँस खाने के बाद काम की उत्तेजना और अन्य पाशविक प्रवृतियाँ आप ही आप प्रबल हो जाती हैं। माँस खाकर सदाचारी बनना असंभव है ।" चार्ल्स डारविन ने लिखा है - "प्राचीन काल में मनुष्य भारी संख्या में शाकाहारी ही थे । (Descent of Man, P. 156 ) और मैं विस्मित हूँ कि ऐसे असाधारण मजदूर मेरे देखने में कभी नहीं आए. जैसे कि चिली की खानों में काम करते हैं । वे बड़े दृढ़, बलवान हैं और वे सब शाकाहारी हैं । इनके अतिरिक्त अलवर्ट आईंस्टीन, हमवोल्ट, ई. एल. प्रेट, मि. होरेस ग्रीले, प्रो. जोहेनरे, ए. ई. वेरिस, रवीन्द्रनाथ टैगोर, जार्ज बर्नाड शा, काका कालेलकर आदि अनेक विद्वानों ने भी शाकाहार का प्रबल समर्थन किया है । बीसवीं सदी में अहिंसक वैचारिक क्रान्ति के उन्नायक महानतम दार्शनिक राजनीतिज्ञ एवं सन्त महात्मा गांधी तो न केवल इसके प्रबल समर्थक ही थे, वरन् इसके प्रचारक भी थे। शाकाहार उनके गांधीवादी जीवन-दर्शन का प्रमुख अंग है। उन्होंने लिखा --- "डॉक्टर किंग्सफोर्ड और हेग ने माँस की खुराक से शरीर पर होनेवाले बुरे असर को बहुत ही स्पष्ट रूप से बतलाया है । इन दोनों ने यह बात साबित कर दी है कि दाल खाने से जो एसिड पैदा होता है, बही एसिड माँस खाने से बनता या पैदा होता है । माँस खाने से दांतों को हानि पहुँचती है, संधिवात हो जाता है । यहीं तक बस नहीं, इसके खाने से मनुष्यों में क्रोध उत्पन्न होता है । हमारी आरोग्यता की व्याख्या के अनुसार क्रोधी मनुष्य निरोग नहीं कहा जा सकता । केवल माँस-भोजियों के भोजन पर विचार करने की जरूरत नहीं, उनकी दशा ऐसी अधम है कि उसका स्वालकर हम माँस खाना कभी पसन्द नहीं कर सकते । माँसाहारी कभी निरोग नहीं कहे जा सकते ।" सामाजिक पक्ष सामाजिक दृष्टि से यदि हम मानवीय आहार का मूल्यांकन करें तो भी शाकाहार का पक्ष अत्याधिक प्रबल है । असामाजिक तथा आपराधिक तत्वों के सम्बन्ध में किये गए विभिन्न सामाजिक अनुधानों से जो तथ्य सामने आए हैं, उनसे स्पष्ट है कि युद्ध, कलह, रक्तपात, हिंसा एवं अन्य भीषण अपराध माँसाहारियों में ही अधिक पाए जाते हैं। माँसाहार और मद्यपान का भी घनिष्ट सम्बन्ध है । सामान्यतः माँसाहारी मद्यपान की ओर प्रेरित होते हैं । इन दोनों के संयोग से यौन इच्छाएँ उग्र होने के कारण ये लोग यौन अपराधों में २६३ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संलग्न होते हैं । इससे यौन विकार उत्पन्न होते हैं तथा समाज में अव्यवस्था एवं कलह को प्रोत्साहन मिलता है । यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि माँसाहार क्रोध एवं यौन इच्छाओं को प्रोत्साहित करता है । ये दोनों ही प्रवृत्तियाँ मानव को असामाजिक कार्यों के लिये प्रेरित करती हैं। माँसाहार के लिये निरीह पशुओं का वध किया जाने के कारण माँसाहारियों में प्रेम, दया और अहिंसा की भावना लुप्त होती जाती है, इसके कारण अदया एवं हिंसा की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलता है। यही नहीं, इसके कारण अनेकों पशु-पक्षियों की जातियाँ सर्वथा समाप्त होती जा रही हैं। इस प्रकार सामाजिक दृष्टि से भी शाकाहार अत्यधिक उपयुक्त आहार है, इससे आदर्श समाज की स्थापना में सहायता मिलती है । क्रूरता, आर्थिक पक्ष आर्थिक दृष्टि से शाकाहार माँसाहार की तुलना में सस्ता, सुलभ, सहज एवं प्रचुर होता है । यह रचनात्मक उत्पादन का परिणाम होने से प्राकृतिक है । प्रकृति प्रत्येक समय समयानुकूल अन्न, फल तथा सब्जियां आदि उत्पादन प्रदान करती । आज मनुष्य जाति का एक बहुत बड़ा भाग कृषि उत्पादन में लगा है । इनके परिश्रम तथा प्रकृति के आशीर्वाद से प्राकृतिक उत्पादनों में जितनी विविधताएँ उपलब्ध हैं, वह माँसाहार के लिये कल्पना की ही बात है । यही कारण है कि सम्भवतः विश्व में शायद ही कोई मानव ऐसा हो जो मात्र माँसाहार पर ही जीवित रहता हो और प्राकृतिक भोजन अन्न, फल, वनस्पतियों, सब्जियों आदि को ग्रहण करता हो जबकि विश्व में करोड़ों ऐसे लोग हैं जो पूर्णतः शाकाहार पर ही जीवित हैं और किसी भी दृष्टि से माँसाहारियों के समक्ष हीन नहीं हैं वरन कई दृष्टियों से उनसे उन्नत हैं । शाकाहार न केवल मूल्य की दृष्टि से सस्ता तथा उपलब्धता की दृष्टि से सहज व सुलभ ही है वरन् इसके कारण करोड़ों व्यक्तियों को जो कृषि एवं उनसे सम्बद्ध रोजगारों में लगे हैं तथा करोड़ों जीवों को जो दुग्ध उत्पादन या कृषि उत्पादन में लगे हैं, को जीविका प्रदान करता है । वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानवीय आहार के सम्बन्ध में अनेकों वैज्ञानिक अनुसंधान हुए हैं । इन अनुसंधानों से यह तथ्य स्पष्टतः रूप से उजागर हुए हैं कि शाकाहारी व्यक्ति अधिक दीर्घजीवी, सुदृढ़ एवं स्वस्थ होते हैं जबकि माँसाहार अनेक दोषों का कारक है। अजरवेजान (सोवियत रूस ) के 168 वर्षीय शिराली मिसालिनोव ने माँसाहार और मदिरा दोनों को ग्रहण न करने को अपने दीर्घ और चुस्त जीवन का रहस्य बताया है । वैज्ञानिक अनुसंधानों के अनुसार स्वस्थ एवं पुष्ट शरीर निर्माण के लिये निम्नलिखित तत्वों की पूर्ति आहार में आवश्यक मानी गयी है— 1. प्रोटीन - यह शारीरिक विकास, उत्साह, शक्ति और स्फूर्ति पैदा कर शरीर की क्षतिपूर्ति करती है । 2. फैट (चिकनाई ) - यह शरीर में शक्ति और गरमी पैदा करती है । 3. खनिज लवण - ये हड्डियों को मजबूत बनाते हैं तथा भोजन शक्ति को अच्छा रखते हैं । 4. कार्बोहाइड्र ेट्स - - २६४ ये शरीर में शक्ति और गरमी पैदा करते हैं । 5. जल ( नमी ) - यह शरीर की सफाई कर गन्दे पवार्थों यथापसीना, मल-मूत्र आदि को शरीर के बाहर निकालने Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 87 ॥ तथा भोजन के पाचन एवं खून के दौरे में मदद देता है 6. घी तथा शरीर के तापक्रम को समान रखता है। 7. दूध 60 ,, 8. मांस 28 , 6. कैलशियम 9. मछली यह हडिडयों और दांतों को मजबूत बनाने, शरीर का रंग निखारने, बालों को घने तथा मजबत बनाने विभिन्न देशों के सन्दर्भ में वहां के निवासियों के का कार्य करता है। लिये दैनिक रूप से आवश्यक विभिन्न पौष्टिक तत्वों के सन्दर्भ में किये गए अनुसंधान के आधार पर जो 7. लोहा तथ्य प्रकाश में आए हैं, और इस आधार पर प्रत्येक यह खून के प्रत्येक तन्तु तक आक्सीजन पहुँचाने व्यक्ति के लिये जो सन्तुलित आहार सुझाये गये हैं तथा खुन की लाली बढ़ाने एवं बनाए रखने का काम उनसे भी यह बात स्पष्टतः प्रमाणित हुई है कि शाकाकरता है। हार में ये सभी पौष्टिक तत्व पर्याप्त एवं प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हैं। इण्डियन काउन्सिल ऑफ मेडीकल 8. विटामिन रिसर्च द्वारा सन 1968 में भारतवासियों के लिये ये शरीर को स्वस्थ तथा रोगमुक्त रखते हैं । आवश्यक सन्तुलित भोजन की जो तालिकाएँ (देखिये 9. कैलोरी-- तालिका क्रमांक 3) प्रकाशित की गई हैं उनसे भी यह स्पष्टतः प्रमाणित है कि शाकाहार ही सन्तुलित यह शरीर में शक्ति व गरमीनापने का पैमाना है अर्थात शरीर में उत्पन्न गरमी और शक्ति मापने की भोजन उपलब्ध कराने को पर्याप्त रूप से सक्षम माप है। आहार है। विभिन्न खाद्य पदार्थों में पाए जानेवाले उपरोक्त चिकित्सा शास्त्रीय दृष्टिकोण तत्त्वों की मात्रा के आधार पर यह तथ्य सुनिश्चित रूप वैज्ञानिकों एवं चिकित्सा शास्त्रियों ने आहार के से कहा जा सकता है कि अनाज व वनस्पतियों में पर्याप्त सम्बन्ध में किये गये विभिन्न अनुसंधानों में संतुलित मात्रा में पोषक तत्व उपलब्ध होते हैं, (देखिये तालिका आहार तथा विभिन्न आहारों में उपलब्ध पोषक तत्वों क्रमांक 4) न केवल यही वरन वहत सी वनस्पतियों में के संबंध में पर्याप्त अनुसंधान किये हैं। उनसे जहाँ इनकी मात्रा मांसाहारी वस्तुओं की अपेक्षा काफी आहारों के गुणात्मक पक्ष पर प्रकाश पड़ा है, वहाँ गत अधिक है, जैसा कि निम्न तालिका से स्पष्ट है: शताब्दी में चिकित्सा शास्त्रियों ने विभिन्न आहारों द्वारा मानवीय शरीर पर पड़नेवाले कुप्रभावों पर भी तालिका क्रमांक 1 पर्याप्त मात्रा में शोध-कार्य किये हैं, इन अनुसंधानों से पोषक अंशों की मात्रा जो नये तथ्य प्रकाश में आये हैं वे माँसाहारियों के 1. बादाम 91 प्रतिशत लिये चौंका देनेवाले एवं गम्भीर चेतावनी स्वरूप हैं। 2. चना, मटर अनेकों चिकित्सा शास्त्रियों के मतानुसार माँसाहार 3. चावल गठिया, कैन्सर, पक्षाघात, राजयक्षमा, मगी, रक्ताम्ल, 4. गेंहूँ कुष्ट आदि कितने ही भयानक रोगों को प्रोत्साहित 5. जी . ... 84 , करता है । विगत में हुए अनुसंधानों से मांसाहारियों वस्तु ००००० 87 87 86 , , , २९५ Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का यह तर्क कि मांसाहार माँस तथा शक्ति की वृद्धि करता है, इसके कारण दिल की बीमारी हाई ब्लड होती है, भीखण्डित हुआ। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार। प्रेशर, गुर्दे की बीमारी, पित्त की थैली बीमारी में माँसाहार माँस तथा चर्बी बढ़ाकर मोटापे में वृद्धि पथरी और जोड़ों में दर्द हो जाता है। अवश्य करता है, परन्तु शक्ति या स्फूर्ति में नहीं। माँसाहार से स्फूर्ति या ओज प्रकट नहीं होता, यही कृषि विभाग, फ्लोरिडा (अमेरिका) ने अपने हैल्थ कारण है कि घायल, बीमार, अशक्त, गभिणी अथवा बुलेटिन (अक्टूबर 1967) में प्रकाशित शोध प्रतिवेदन प्रसूता को माँसाहार निषिद्ध रहता है और उसे दूध, (रिसर्च रिपोर्ट) में कहा है कि -18 माह के परीफलों का रस तथा हल्का शाकाहारी भोजन दिया क्षण के बाद 30 प्रतिशत अण्डों में डी. डी. टी. जाता है। नामक विष पाया गया।' डा. जे. एम. विलकिस ने लिखा है-“अण्डे की सफेदजरदी मुख्यतया अलवुचिकित्सा शास्त्रीय अनुसंधानों में प्रत्येक आहार मिन ही है, जो कि प्रोटीन की एक किस्म ही है। शरीर को सक्ष्मतम बारीकियों की जाँच कर जो तथ्य प्रकाश अलवमिन को नष्ट तत्व के रूप में बाहर निकालता में आए हैं उनसे यह स्पष्ट है कि विभिन्न मांसाहारी है। अण्डे का पीला भाग कोलेस्टरौल नामक पदार्थ वस्तुएं मानव शरीर के लिये अत्यधिक घातक हैं। अपने अन्दर रखता है जो कि एक प्रकार की चिपचिपी मानवीय आहार की चर्चा करते समय विभिन्न मांसा शराब है जो यकृत और खून की रगों में जमा हो हारी वस्तुओं के इस पक्ष पर भी विचार करना जाता है और खून की धमनियों (रगों) में जमा हो आवश्यक है। जाता है तथा खून की धमनियों (रगों) में जख्म और कड़ापन पैदा कर देता है।" डा. इ. व. मैककोलम ने जब बन्दरों को अण्डों पर ही रखा तो उनमें सड़ानेवाले आजकल कुछ लोग अण्डा का निजाव बताकर उस कीटाणु अधिक होने लगे और वे सुस्त हो गए, उनके शाकाहार के अन्तर्गत बताकर शाकाहारियों को उनके पेशाब की मात्रा कम और रंग गहरा हो गया । जब उपयोग का तर्क देने लगे हैं, या यों कहें कि कुछ शाका- उन्हें दूध व अंगर की शर्करा दी गई तो मानसिक व द्वारी अण्डों के उपयोग को उपरोक्त तक से सिद्ध कर शारीरिक दोनों परिवर्तन उनमें पूनः लौट आए और बे दसरों को भी अण्डे खाने की सलाह देने लगे हैं और इस ठीक हो गए। उन्होंने अपने अनुसंधान के आधार पर प्रकार इधर कुछ वर्षों में अण्डों का प्रयोग बढ़ा है, यह परिणाम निकाला कि अण्डों में चूने की कमी होती हैं परन्त वास्तविक रूप से यह तर्क निरर्थक है। मांस और उनमें शर्करा भी नहीं होती है। अतः अण्डों में और टुटी न होने के आधार पर अपडे के तरल को आंत के अन्दर सडाने की रुझान होती है बनिस्वत कि शाकाहार कहना मूर्खता ही है । यह कहनेवाले यह हाजमा दुरुस्त करने की । वे विषाक्त तत्वों को शरीर में जानकर भी कि-प्रत्येक जीव की उत्पत्ति तरल पदार्थ पैदा कर देते हैं और सूस्ती लाते हैं। से ही होती है, इस प्रकार का तर्क देते हैं, यह दुर्भाग्यपर्ण है। विगत अनुसंधानों ने यह सिद्ध किया है कि इंगलैण्ड के डा. राबर्ट ग्राम का लिखना है किअपडे की जरदी अण्डे का बड़ा खतरनाक भाग है। इसमें मुर्गी के बच्चे में बहुत-सी बीमारियाँ होती हैं । अण्डे कोलेस्टोल नामक भयानक विष एक चिकना एलकोहल उन बीमारियों को विशेषतया टी.बी., पेचिश आदि के होता है जो जिगर में पहुंचकर जमा होता है और कीटाणुओं को अपने साथ लाते हैं और इनको खानेहृदय से रक्त ले जानेवाली नाड़ियों में रुकावट पैदा वालों में पैदा कर देते हैं।" डा. ह. बी. मैवलिस ने अण्डे २६६ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिखा है-"अण्डों में कैलशियम की कमी और कार्बो- और तरह-तरह के दर्द पैदा कर देता है।" डा. हेग ने हाइड्रेट्स का बिल्कुल अभाव होता है, इस कारण से अपने अनुसंधान के आधार पर इस सन्दर्भ में निम्न .. बडी आँतों में जाकर सडान मारते हैं।' डा. गोविन्द- तालिका प्रस्तुत की हैराज का कहना है कि "अण्डों में नाइटोजन, फास्फोरिक तालिका क्रमांक 2 एसिड और चर्बी की अधिक मात्रा होती है, इस कारण ये शरीर में तेजावी माद्दा पैदा करते हैं और मनुष्य मछली व मांस में यूरिक एसिड विष को रोगी बनाते हैं। इस प्रकार अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति- खाद्य पदार्थ का नाम प्रति पौंड यूरिक एसिड प्राप्त चिकित्सकों द्वारा किये गए अनुसंधानों के आधार विष की मात्रा पर यह बात स्पष्टत: प्रमाणित हो गई है कि अण्डे मछली मनुष्य के लिये उपयुक्त आहार नहीं हैं। भेड़, वकरी बछड़ा मांस एवं मछलियां सूअर चूजा गाय गाय की भुनी वोटी गाय का जिगर .... मांस का शोरबा... माँस के प्रभावों की चर्चा करते हुए हार्वर्ड स्कूल ऑफ अमेरिका के डा. ए. वाचमैन और डा. डी. एस. वर्मस्टीन ने लिखा है-"माँसाहारी लोगों का पेशाब प्रायः तेजाबयुक्त होता है। इस कारण शरीर के रक्त का तेजाव और क्षार का अनुपात ठीक रखने के लिये हड्डियों में से क्षार के नमक खून में मिलते हैं, और इसके विपरीत शाकाहारियों का पेशाब क्षारवाला होता है । इसलिये उनकी हड्डियों का क्षार खून में नहीं जाता और हडियाँ मजवत रहती हैं। उनकी राय में जिन व्यक्तियों की हडिडयां कमजोर हों उनको विशेष तौर पर अधिक फल, सब्जियों के प्रोटीन और दध का सेवन करना चाहिये, माँस एक दम छोड़ देना चाहिये।" यह यूरिक एसिड विष जव रक्त में मिलता है तव हार्ट डिजीज, टी. बी, सांस रोग, जिगर की बीमारी हिस्टीरिया, खून की कमी, गठिया, अजीर्ण, अधिक नींद आना, तरह-तरह के दर्द, इनफ्लूएंजा जैसे अनेक प्रकार के बुखार आदि सैकड़ों रोग पैदा होते हैं। मुर्गे का मांस __ लन्दन के डाक्टर एलेक्जेण्डर हेग के वैज्ञानिक पशु चिकित्सा सेवाओं के संघीय निर्देशक डा. एस. परीक्षण के अनुसार मछली और मांस में यूरिक एसिड बुरासिंहम ने अनुसंधान के आधार पर यह प्रमाणित विष होता है । यह विष जब खून में मिलता हैं तव किया है कि मुर्गे खाने से पुरुषों का पौरुष खतरे में पड़ दिल की बीमारी, टी. बी. जिगर की खराबी, श्वांस सकता है । मुर्गों में वजन बढ़ानेवाले हार्मोन्स होने के रोग, खून की कमी, गठिया, हिस्टीरिया, सुस्ती, अजीर्ण कारण इसके खाने से पुरुषों में स्त्रीयोचित गुणों का 1. लैंसेंट 1968 वोल्यूम, पृष्ठ 958 (साइन्स न्यूज : दिल्ली विज्ञान संघ से उद्धृत) २९७ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विकास हो सकता है। जो पुरुष मुग की दुकानों में निष्कर्ष काम करते हैं और मुर्गे की गर्दन खाते हैं उनके स्तनों इस प्रकार जहाँ प्राकृतिक दार्शनिक, सामाजिक में वृद्धि के लक्षण पाए गए हैं। एवं आर्थिक दृष्टिकोण से शाकाहार ही उचित एवं आवश्यक मानवीय आहार है वहाँ वैज्ञानिक एवं विभिन्न रोगों सम्बन्धी अनुसंधान चिकित्साशास्त्रीय दृष्टिकोण से भी शाकाहार ही विभिन्न रोगों के सम्बन्ध में किये गए अनुसंधानों सर्वाधिक उपयुक्त आहार है । शाकाहार जहाँ पूर्णाहार : में भी अधिकतर रोगों का कारण मांसाहार पाया गया होने के साथ-साथ पोषक, सुलभ, स्फूर्ति एवं शक्ति है। डा. आर. जे. विलियम्स एवं राबर्टग्रांस के अनुसार है वहाँ माँसाहार में मोटापा बढ़ाने के अतिरिक्त अन्य . अण्डे की सफेदी में एवीमान नामक भयानक तत्व कोई विशेष गुण नहीं हैं। उल्टे मांसाहार के कारण, पशु- - एक्जीमा उत्पन्न करता है । जिन जानवरों को अण्डे की पक्षियों के शरीर में पाये जानेवाले अनेक रोगाणु सफेदी खिलाई गई उन्हें लकवा मार गया और चमड़ी मानव शरीर में प्रवेश कर अनेकों विकार उत्पन्न करते. सूझ गई। डा. रोबर्ट ग्रांस व प्रो. इरविंग डेविडसन के हैं । यही कारण है कि चिकित्सा शास्त्रीयों के अनुसार-"एक अण्डे में लगभग 4 ग्रेन कोलेस्टरोल नवीनतम अनुसंधानों के आधार पर पश्चिमी देशों में की मात्रा पाई जाती है । इसकी अधिक मात्रा दिल जो विशेषकर माँसाहारी क्षेत्र हैं, वहाँ शाकाहार का की बीमारी, हाईव्लड प्रेशर, गुर्दो के रोग, पित्त की प्रबल प्रचार हो रहा है व मांसाहार के प्रति जनथैली में पथरी आदि रोगों को पैदा करते हैं। न्यूअर सामान्य को आगाह किया जा रहा है। ऐसी स्थिति में कॉलेज आफ न्यूट्रिशन के डा. इ. वी. मेल्कालम के भारत जैसे देश में जहाँ की बड़ी संख्या शाकाहारी है, अनुसार अण्डों में कोर्बोहाइड्रेट्स बिल्कुल नहीं होते और पश्चिम के अन्धानुकरण के कारण माँसाहार का बढ़ता कैलशियम भी बहुत कम होता है, अतः इससे पेट में प्रयोगचिन्तनीय है, ऐसी दशा में आवश्यक है कि सड़न पैदा होती है। डा. रॉबर्ट ग्रांस ने कहा है कि लोगों को उनके आहार के सम्बन्ध में अधिकतम ज्ञान मुगियों में बहुत सी बीमारियां होती हैं, अण्डे उन दिया जाये ताकि वह उचित-अनुचित का निर्णय कर बीमारियों को विशेषतया टी.बी. एवं पेचिश आदि को सकें, इसी उद्देश्य से इस लेख में संक्षिप्त में पाठकों को अपने साथ ले जाते हैं और इनको खानेवालों में पैदा उनके उचित आहार के बारे में तर्कसंगत जानकारी करते है। देने का प्रयास किया गया है। २६८ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खाद्य पदार्थों का नाम तालिका क्रमांक 3 संतुलित भोजन (इण्डियन काउन्सिल आफ मेडीकल रिसर्च द्वारा 1968 में प्रस्तावित ) (अ) वयस्क पुरुष का सन्तुलित भोजन अनाज दालें टूटे पसे वाले साग खाद्य पदार्थ का नाम बैठकर काम करनेवाले के लिए (ग्राम में ) 400 70 100 75 300 60 125 75 50 30 200 30 अन्य साग जडीली तरकारियां फल दूध चिकनाई व तेल चीनी व गुड़ मूंगफली * अगर मूंगफली न खाना चाहे तो उसके स्थान पर 30 ग्राम चिकनाई व तेल बढ़ा सकते हैं। 75 30 200 35 30 बैठकर काम करनेवाली से लिये ( ग्राम में ) 30 साधारण काम करनेवाले के लिये (ग्राम में) साधारण काम करनेवाली के लिये ( ग्राम में ) ( ब ) वयस्क स्त्री का सन्तुलित भोजन 350 70 125 75 75 30 200 35 475 80 125 75 100 30 30 200 २६६ 40 40 अधिक परिश्रम करने वाली के लिये ( ग्राम में ) अनाज दालें हरे पत्ते वाले साग अन्य सब्जीयां जड़ीली तरकारियां फल दूध चिकनाई व तेल चीनी व गुड़ 40 मूंगफली 40+ + अगर 40 ग्राम मूंगफली न खाना चाहें तो उसके स्थान पर 25 ग्राम चिकनाई या तेल ले सकते हैं। 475 70 125 100 100 30 200 $40 अधिक परिश्रम करने वाले के लिये (ग्राम में ) 650 80 125 100 100 30 200 50 अतिरिक्त भोजन गर्भावस्था, छात्रावस्था ( ग्राम में) ( ग्राम में ) 50 25 55 50 125 10 100 10 25 125 15 20 Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (स) किशोरावस्था वाले लड़के व लड़कियों का सन्तुलित भोजन - - खाद्य पदार्थ का नाम ___13 से 15 वर्ष (ग्राम में) लड़के 17 से 18 वर्ष (ग्राम में) . लड़की 13 से 18 वर्ष (ग्राम में) अनाज 430 70 दालें 350 70 150 100 हरे पत्ते वाले साग अन्य साग जड़ीली तरकारियां फल 450 70 100 75 100 30 250 45 75 75 30 250 75 30 250 चिकनाई व तेल चीनी व गुड़ मूगफली 35 30 50 + अगर मूगफली न खाना चाहें तो उसके स्थान पर 30 ग्राम चिकनाई व तेल ले सकते हैं। (द) बच्चों के लिमे सन्तुलित भोजन स्कूल जाने के पूर्व आयु के बच्चे । 1 से 3 वर्ष 4 से 6 वर्ष (ग्राम में) (ग्राम में) स्कूल जाने वाले बच्चे 7 से 9 वर्ष 10 से 12 वर्ष (ग्राम में) (ग्राम में) 150 .50 200 60 अनाज दालें हरे पत्ते वाले साग अन्य साग और जड़ोले साग फल 250 70 75 320 70 100 50 ___30 75 50 50 50 300 20 250 250 25 250 30 50 चिकनाई व तेल . गुड़ व चीनी 35 30 40 50. Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गेहूं का आटा मकई चावल मुग उड़द अरहर मनूर भुना मटर भुना चना लोविया बड़ा सोयाबीन मेथी वादाम काजू भुनी मूंगफली frear अखरोट मक्खन εit पनीर estar समेटा दूध पावडर तालिका क्रमांक - 4 शाकाहार एवं मांसाहार के पौष्टिक तत्वों की तुलनात्मक तालिका (अ) शाकाहारी खाद्य प्रोटीन वसा (स्नेह) 12.1 11.1 8.5 24.0 24-0 22.3 25.1 22.9 22.5 24-6 43.2 26.2 5.8 28.8 58.9 21.2 46-9 31.5 39.8 19-8 53.5 15.5 64.5 24.1 14.6 38.0 17 3-6 0.6 1-3 1.4 1.7 0.7 1.4 5.2 0:6 19.5 80.8 100.0 25.1 31.2 01 खनिज कार्यों लवण हाइड्रेट्स 2.8 1.5 0.9 3.6 3.4 3.6 2.1 2.3 2-2 3.2 4.6 3.0 2.8 2.4 2.3 2.8 1-8 4.2 3.1 6.8 69.4 66.2 77.4 56.6 60.3 57.2 59.7 62-5 58.9 55.7 20.9 44.1 10-5 22.3 19.3 16.2 11-0 6.3 20.5 51.0 ३०१ कैलशियम 0.04 11-5 0.01 2.1 0.01 2.8 0.14 8.5 0.20 9.8 0-14 8.8 0.13 20 0.03 5:0 0.07 0.07 0.24 0-16 0.23 0.05 0 05 0-14 0.10 0.79 0.65 1.37 लोहा (मि. ग्रा.) 8.9 3.8 11.5 14-1 3-5 5.0 0.3 13.7 4.8 21 5.8 1.4 पानी 12.2 14.9 12.6 10.4 10.9 15.2 12:4 9-9 11.2 12.0 8-1 13-7 5.2 5.9 4.0 5.6 4.5 40.3 30.6 4.1 कैलोरी 352 343 349 334 350 333 346 358 372 327 432 333 655 596 661 626 687 730 900 348 420 347 Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (ब) मांसाहारी खाद्य प्रोटीन पानी कैलोरी वसा खनिज कार्वो- कैलशियम लोहा (स्नेह) लवण हाईड्रेट्स (मि. ग्रा.) मुर्गी का अण्डा बतख का अण्डा कलेजी(भेड़) बकरी का गोश्त सूअर का गोश्त गाय का गोश्त मछली 133 13.3 13.5 13.7 19: 3 7 .5 18.5 13.3 18. 7 4 .4 22.6 . 26 22.6 0.6 1.0 -- 100.7 1.5 1.3 1.3 0.06 0.07 0.01 0.15 0.03 21 30 6.3 2.5 2.3 0. 8 73.7 710 70.4 71.5 77.4 73.4 78.4 173 180 150 194 114 114 91 1.0 0.01 0.1 0.8 0.01 302