Book Title: Shakahar Vaigyanik evam Chikitsashastriya Drushtikona
Author(s): Padmachandra Jain
Publisher: Z_Tirthankar_Mahavir_Smruti_Granth_012001.pdf

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Page 4
________________ संलग्न होते हैं । इससे यौन विकार उत्पन्न होते हैं तथा समाज में अव्यवस्था एवं कलह को प्रोत्साहन मिलता है । यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि माँसाहार क्रोध एवं यौन इच्छाओं को प्रोत्साहित करता है । ये दोनों ही प्रवृत्तियाँ मानव को असामाजिक कार्यों के लिये प्रेरित करती हैं। माँसाहार के लिये निरीह पशुओं का वध किया जाने के कारण माँसाहारियों में प्रेम, दया और अहिंसा की भावना लुप्त होती जाती है, इसके कारण अदया एवं हिंसा की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन मिलता है। यही नहीं, इसके कारण अनेकों पशु-पक्षियों की जातियाँ सर्वथा समाप्त होती जा रही हैं। इस प्रकार सामाजिक दृष्टि से भी शाकाहार अत्यधिक उपयुक्त आहार है, इससे आदर्श समाज की स्थापना में सहायता मिलती है । क्रूरता, आर्थिक पक्ष आर्थिक दृष्टि से शाकाहार माँसाहार की तुलना में सस्ता, सुलभ, सहज एवं प्रचुर होता है । यह रचनात्मक उत्पादन का परिणाम होने से प्राकृतिक है । प्रकृति प्रत्येक समय समयानुकूल अन्न, फल तथा सब्जियां आदि उत्पादन प्रदान करती । आज मनुष्य जाति का एक बहुत बड़ा भाग कृषि उत्पादन में लगा है । इनके परिश्रम तथा प्रकृति के आशीर्वाद से प्राकृतिक उत्पादनों में जितनी विविधताएँ उपलब्ध हैं, वह माँसाहार के लिये कल्पना की ही बात है । यही कारण है कि सम्भवतः विश्व में शायद ही कोई मानव ऐसा हो जो मात्र माँसाहार पर ही जीवित रहता हो और प्राकृतिक भोजन अन्न, फल, वनस्पतियों, सब्जियों आदि को ग्रहण करता हो जबकि विश्व में करोड़ों ऐसे लोग हैं जो पूर्णतः शाकाहार पर ही जीवित हैं और किसी भी दृष्टि से माँसाहारियों के समक्ष हीन नहीं हैं वरन कई दृष्टियों से उनसे उन्नत हैं । शाकाहार न केवल मूल्य की दृष्टि से सस्ता तथा उपलब्धता की दृष्टि से सहज व सुलभ ही है वरन् इसके Jain Education International कारण करोड़ों व्यक्तियों को जो कृषि एवं उनसे सम्बद्ध रोजगारों में लगे हैं तथा करोड़ों जीवों को जो दुग्ध उत्पादन या कृषि उत्पादन में लगे हैं, को जीविका प्रदान करता है । वैज्ञानिक दृष्टिकोण मानवीय आहार के सम्बन्ध में अनेकों वैज्ञानिक अनुसंधान हुए हैं । इन अनुसंधानों से यह तथ्य स्पष्टतः रूप से उजागर हुए हैं कि शाकाहारी व्यक्ति अधिक दीर्घजीवी, सुदृढ़ एवं स्वस्थ होते हैं जबकि माँसाहार अनेक दोषों का कारक है। अजरवेजान (सोवियत रूस ) के 168 वर्षीय शिराली मिसालिनोव ने माँसाहार और मदिरा दोनों को ग्रहण न करने को अपने दीर्घ और चुस्त जीवन का रहस्य बताया है । वैज्ञानिक अनुसंधानों के अनुसार स्वस्थ एवं पुष्ट शरीर निर्माण के लिये निम्नलिखित तत्वों की पूर्ति आहार में आवश्यक मानी गयी है— 1. प्रोटीन - यह शारीरिक विकास, उत्साह, शक्ति और स्फूर्ति पैदा कर शरीर की क्षतिपूर्ति करती है । 2. फैट (चिकनाई ) - यह शरीर में शक्ति और गरमी पैदा करती है । 3. खनिज लवण - ये हड्डियों को मजबूत बनाते हैं तथा भोजन शक्ति को अच्छा रखते हैं । 4. कार्बोहाइड्र ेट्स - - २६४ ये शरीर में शक्ति और गरमी पैदा करते हैं । 5. जल ( नमी ) - यह शरीर की सफाई कर गन्दे पवार्थों यथापसीना, मल-मूत्र आदि को शरीर के बाहर निकालने For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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