Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
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आगम (०४)
[भाग-6] “स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:)
समवाय [१], ------------------- ----------- मूलं [१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
PAN
प्रत सूत्रांक
धम्मे एगे अपम्मे एगे पुण्णे एगे पावे एगे बंधे एगे मोक्खे एगे आसवे एगे संवरे एगा वेयणा एगा णिजरा १८ जंबुद्दीवे दीवे एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पण्णत्ते, अप्पइट्टाणे नरए एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पन्नत्ते, पालए जाणविमाणे एग जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पन्नत्ते, सव्वट्ठसिद्धे महाविमाणे एगं जोयणसयसहस्सं आयामविक्खंभेणं पन्नत्ते । अहानक्खत्ते एमतारे पन्नत्ते, चित्तानक्खत्ते एगतारे पन्नत्ते, सातिनक्खत्ते एगतारे पन्नत्ते । इमीसे णं रयणप्पभाए पुढवीए अत्येगइयाणं नेरझ्याणं एगं पलिओवमं ठिई पन्नत्ता, इमीसे णं रयणप्पहाए पुढवीए नेरइआणं उक्कोसेणं एगं सागरोवमं ठिई पन्नत्ता, दोच्चाए पुढवीए नेरइयाणं जहन्नेणं एगं सागरोवमं ठिई पन्नत्ता, असुरकुमाराणं देवाणं अत्येगइयाणं एगं पलिओवमं ठिई पत्नत्ता, असुरकुमाराणं देवाणं उकोसेणं एगं साहियं सागरोवमं ठिई पन्नत्ता, असुरकुमारिंदवजियाणं भोमिआणं देवाणं अत्येगइआणं एग पलिओवमं ठिई पन्नत्ता, असंखिजवासाउयसन्निपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं अत्यंगइआणं एग पलियोवमं ठिई पन्नत्ता, असंखिअयासाउयगन्भवतियसंणिमणुयाणं अत्थेगइयाण एगं पलिओवमं ठिई पन्नत्ता, वाणमंतराणं देवाणं उक्कोसेणं एग पलिओवमं ठिई पन्नता, जोइसियाणं देवाणं उकोसेणं एगं पलिओवमं वाससयसहस्समभहियं ठिई पन्नत्ता, सोहम्मे कप्पे देवाणं जहन्नेणं एग पलिओवर्म ठिई पन्नत्ता, सोहम्मे कप्पे देवाणं अत्येगइआणं एग सागरोवमं ठिई पन्नत्ता, ईसाणे कप्पे देवाणं जहन्नेणं साइरेगं एगं पलिओवमं ठिई पन्नत्ता, ईसाणे कप्पे देवाणं अत्थेमइयाणं एर्ग सागरोवम ठिई पन्नत्ता, जे देवा सागरं सुसागरं सागरकंत भवं मणुं माणुसोत्तरं लोगहियं विमाणं देवत्ताए उववन्ना तेसि णं देवाणं उक्कोसे णं एगं सागरोवमं ठिई पन्नत्ता, ते ण देवा
अनुक्रम
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