Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
View full book text
________________
आगम
(०४)
[भाग-6] “स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं वृत्ति:)
समवाय [१] --------------------------------- मूल [१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
प्रत
श्रीसमवा-18 एगस्स अद्धमासस्स आणमंति वा पाणमंति वा उस्ससंति वा नीससंति वा, तेसि णं देवाणं एगस्स वाससहस्सस्स आहारडे समु
१समयांगे पजइ, संतेगइया भवसिद्धिया जे जीवा ते एगेणं भवग्गहणेणं सिज्झिस्संति बुझिस्संति मुचिस्संति परिनिब्वाइस्संति सव्वदु- वायः
क्खाणमंतं करिस्संति १८ ॥ सूत्रम् ॥१॥ वृत्तिः
'श्रुतम् आकर्णितं 'मे' मया हे 'आयुष्मन् !' चिरजीवित!जम्बूनामन् ! 'तेर्ण'ति योऽसौ निर्मूलोन्मूलितरागद्वेषादिवि-18 ॥२॥
षमभावरिपुसैन्यतया भुवनभावावभासनसहसंवेदनपुरस्सरी विसंवादिवचनतया च त्रिभुवनभवनप्राङ्गणप्रसपत्सुधाधवलयशोराशिस्तेन महावीरेण भगवता-समोश्चर्यादियुक्तेन 'एव'मिति वक्ष्यमाणेन प्रकारेणाख्यातम्-अभिहितमात्मादिवस्तुतत्त्वमिति गम्यते, अथवा 'आउसंतेणं'ति भगवतेत्यस्य विशेषणमायुष्मता चिरजीवितवता भगवतेति, अथवा ।
पाठान्तरेण मयेत्यस्य विशेषणमिदं आवसता मया गुरुकुले आमृशता वा-संस्पृशता वा मया विनयनिमित्तं करतलाभ्यां ४ागुरोः क्रमकमलयुगलमिति, यहा आउसंतेण'ति आजुपमाणेन वा प्रीतिप्रवणमनसेति, यदाख्यातं तदधुनोच्यते'एगे आया इत्यादि, कस्यचिद्वाचनायामपरमपि सम्बन्धसूत्रमुपलभ्यते, यथा-'इह खलु समणेणं भगवया इत्यादि, तामेव च वाचनां वृहत्तरत्वाद्वयाख्यास्यामः, इदं च द्वितीयसूत्र सञ्चहरूपप्रथमसूत्रस्यैव प्रपञ्चरूपमवसेयम् ,॥२॥ अस्स चैवं गमनिका-'इह' अभिल्लोके निर्ग्रन्थतीर्थे वा, खलु वाक्यालबारे अवधारणे वा, तथा च इहैव, न शा-1 क्यादिप्रवचनेषु, श्राम्यति-तपस्यतीति श्रमणस्तेन, इदं चान्तिमजिनस्य सहसम्पन्नं नामान्तरमेव, यदाह-'सहसं
FORCE
CON
JMEauratos
'आउसंतेणं' शब्दस्य व्याख्या,
~15

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 338