Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
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आगम (०४)
[भाग-6] “स्थान" - अंगसूत्र-३ (मूलं+वृत्ति:)
समवाय [१]. ------------------------------------ मल [१] पूज्य आगमोद्धारकरी संशोधित: मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित.आगमसूत्र- [०४] अंगसूत्र- [०४] “समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्ति:
१ सम
बायः
प्रत
सुत्रांक
श्रीसमवा- समवतरन्ति संमिलन्ति नानाविधा आत्मादयो भावा अभिधेयतया यस्मिन्नसौ समवाय इति, स च प्रवचनपुर-
यांगे तपस्याङ्गमिति समवायाङ्गम् , तत्र किल श्रीश्रमणमहावीरवर्द्धमानखामिनः सम्बन्धी पञ्चमो गणधर आर्यसुधर्मश्रीअभय
खामी खशिष्यं जम्बूनामानमभि समवायाज्ञार्थमभिधित्सुः भगवति धर्माचार्ये बहुमानमाविर्भावयन् खकीयवचने वृतिः
च समस्तवस्तुविस्तारखभावावभासिकेवलालोककलितमहावीरवचननिःश्रिततयाऽविगानेन प्रमाणमिदमिति शिष्यस्य ॥१॥ मतिमारोपयन्निदमादावेव सम्बन्धसूत्रमाह
सुर्य मे आउसंतेणं भगवया एवमक्खायं-[इह खलु समणेणं भगवया महावीरेणं आइगरेणं तित्थगरेणं सयंसंबुद्धेणं पुरिसुत्तमेणं पुरिससीहेणं पुरिसवरपुंडरीएणं पुरिसवरगंधहत्थिणा लोगुत्तमेणं लोगनाहेणं लोगहिएणं लोगपईवेणं लोगपत्रोअगरेणं अभयदएणं चस्खुदएणं मग्गदएणं सरणदएणं जीवदएणं धम्मदएणं धम्मदेसएणं धम्मनायगेणं धम्मसारहिणा धम्मवरचाउरंतचक्वट्टिणा अप्पडिहयवरनाणदसणधरेणं वियदृच्छउमेणं जिणेणं जावएणं तिन्नेणं तारएणं बुद्धेणं वोहएण मुत्तेणं मोयगेणं सव्वत्रुणा सव्वदरिसिणा सिवमयलमरुयमणंतमक्खयमवाबाहमपुणरावित्तिसिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपाविउकामेणं इमे दुवालसंगे गणिपिडगे पन्नत्ते, तंजहा-आयार १ सूयगडे २ ठाणे ३ समवाए ४ विवाहपनची ५ नायाधम्मकहाओ ६ उवासगदसाओ ७ अंतगडदसाओ ८ अणुत्तरोववाइदसाओ ९पण्हावागरण १० विवागसुए ११ दिडिवाए १२, तत्थ णं जे से चउत्थे अंगे समवाएत्ति आहिते तस्स णं अयमढे पन्नत्ते, तंजहा-] एगे आया एगे अणाया एगे दंडे एगे अदंडे एगा किरिआ एगा अकिरिआ एगे लोए एगे अलोए एगे
प्रत
अनुक्रम
॥१॥
'समवाय' शब्दस्य व्याख्या, मूलसूत्रस्य आरम्भ:
~13~

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