Book Title: Savruttik Aagam Sootraani 1 Part 07 Samvay Mool evam Vrutti
Author(s): Anandsagarsuri, Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Vardhaman Jain Agam Mandir Samstha Palitana
View full book text
________________
आगम
(०४)
प्रत
सूत्रांक
[-]
प्रत
अनुक्रम [-]
[भाग-७] “समवाय” – अंगसूत्र-४ (मूलं + वृत्तिः)
मूलं [-]
"समवाय" मूलं एवं अभयदेवसूरि-रचिता वृत्तिः
समवाय [ - ], पूज्य आगमोद्धारक श्री संशोधितः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित आगमसूत्र [०४] अंगसूत्र- [०४]
१ स०
अर्हम् । नवावृत्तिकारक श्रीमदभयदेवसूरिवर्यविहित विवरणमुर्त श्रीमत्समवायाङ्गसूत्रम् ।
श्राबद्धमानमानम्य, समवायाङ्गवृत्तिका । विधीयतेऽन्यशास्त्राणां प्रायः समुपजीवनात् ॥ १ ॥ दुः सम्प्रदायादसदूहनाद्वा, भणिष्यते यद्वितथं मयेह । तीधर्मामनुकम्पयद्भिः, शोध्यं मतार्थक्षतिरस्तु मैव ॥ २ ॥
इह स्थानाख्यतृतीयाङ्गानुयोगानन्तरं क्रमप्राप्त एव समवायाभिधानचतुर्थाङ्गानुयोगो भवतीति सोऽधुना समारभ्यते, तत्र च फलादिद्वारचिन्ता स्थानाङ्गानुयोगवत् क्रमादवसेया, नवरं समुदायार्थोऽयमस्य समिति - सम्यक अबेत्याधिक्येन अयनमयः परिच्छेदो जीवाजीवादिविविधपदार्थसार्थस्य यस्मिन्नसौ समवायः समययन्ति वा
वृत्तिकार - कृत वृत्ति- प्रतिज्ञा एवं शाश्त्र स्वीकृत्ति
For Parts Only
~ 12 ~
%%%%%

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 338