Book Title: Satyamrut Achar Kand Author(s): Darbarilal Satyabhakta Publisher: Satyashram Vardha View full book textPage 2
________________ दो वर्ष हुए जब सत्यामृत का दृष्टिकाण्ड प्रकाशित हुआ था। तभी यह सूचना दे दी गई थी कि यमन के दो काण्ड और आचार काण्ड दूसरा व्यवहार काण्ड । हर्ष है कि आज भी हम आचार काण्ड को प्रकाश में ला रहे हैं। हमें आशा है कुछ समय बाद हम दुनिया को दे सकेंगे । सत्यामुतसम्मका मूल ग्रंथ है। कोई संकुचित सम्प्रदाय या मे नहीं है, न यह कोई राजनैतिक पार्टी है । यह तो ऐसा संगठन है जो धर्म समाज और राजनीति आदि सभी क्षेत्रों में करतब विश्वप्रेम व मानव-धर्म के पवित्र सिद्धातों पर दुनिया का नब निर्माण करना चाहता है। तभी तो सत्यसमाज का यह महान ग्रंथ है। सत्य समाज के सदस्यों के ही नहीं प्रत्येक मानव के लिए, चाहे वह किसी भी धर्म संप्रदाय जाति या राष्ट्र से सम्बंध क्यों न रखता हो, यह ग्रंथ बहुत काम की चीज़ है, इसमें मानय समाज की अनेक जटिल समस्याओं को इतनी अच्छी तरह सुलझाया है कि साधारण शिक्षित व्यक्ति भी पढ़ने पर और साधारण समझदार अशिक्षित व्यक्ति भी सुनने पर उन को समझ सकता है । इसमें न कहीं शब्दजाल हैं, न कहीं भूल भुलैय्या है, न पुनरुक्ति के चक्कर है, यहाँ तो सीधे साधे स्पष्ट शब्दों मे बात कही गई है जो हृदय में पेटती चली जाती है । મૈં / साधारणतः आजकल क्रियाकाण्ड को आचार माना जाता है। यह बहुत बड़ी ग़लत फ़हमी है । आचार जीवन ही बहिरंग और अंतरंग शुद्ध है जो मनुष्य को और जगत को सुखी बनाती है। दुनिया के सुख में अपना सुख और दुनिया के दुख में अपना दुख मानकर दुनिया की भलाई के लिये कोशिश करना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है । इसी दृष्टि को लेकर पूज्य सत्यभक्तजी ने इस महान ग्रंथ में आचार की गुत्थियाँ सुलझाई हैं तथा आचार की श्रेणियाँ आदि बताकर हर व्यक्ति को यह सुविधा दी है कि वह उन्हें पढ़कर अपनी शक्ति योग्यता और परिस्थिति के अनुकूल मार्ग चुनले और उसपर चलकर अपने को और जगत को सुखी बनाए । यह ग्रंथ कोरे पांडित्य का परिणाम नहीं है। यह तो अनुभवों और विचारों का निचोड़ है । एक महात्मा ही ऐसा अनुपम धर्मग्रंथ दुनिया को भेंट कर सकता है। यूँ तो सत्य इस ग्रंथ का प्रमाण है ही, पर पूज्य सत्यभक्तजी का महान् जीवन भी इस की प्रानाशिकता के लिये पेश किया जा सकता है । हम आशा करते हैं कि जिन व्यक्तियों के हाथों में यह ग्रन्थ-रन जायगा इसे पढेंगे, इस का मनन करेंगे, और इससे लाभ उठाकर अपने जीवन को उत्कर्ष की और ले जायेंगे । रघुवीर शरण दिवाकर 9 बी. ए., एल-एल. संपादक 'नई दुनिया' सत्याश्रम. वर्धा.Page Navigation
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