Book Title: Satya Asatya Ke Rahasya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 10
________________ सत्य-असत्य के रहस्य प्रश्नकर्ता : इस तरह से क्यों? भगवान को इसमें थोड़ा तो फर्क करना चाहिए न ? दादाश्री : फर्क करे तो वह भगवान ही नहीं है। क्योंकि भगवान के वहाँ ऐसी ये दोनों वस्तुएँ एक समान ही हैं। प्रश्नकर्ता: पर व्यवहार में यदि ऐसा करने जाएँ तो फिर अनर्थ हो जाए। दादाश्री : व्यवहार में नहीं करते ऐसा। पर भगवान के वहाँ ऐसे अलग नहीं है। भगवान तो दोनों को एक समान देखते हैं। भगवान को एक पर भी पक्षपात नहीं है। हाँ, कैसे समझदार भगवान हैं! समझदारीवाले हैं न? ! अपने यहाँ तो दिवालिया व्यक्ति भी होता है और बड़ा श्रीमंत व्यक्ति भी होता है। अपने यहाँ दिवालिये का लोग फज़ीता करते रहते हैं और श्रीमंत के बखान करते रहते हैं। भगवान वैसे नहीं हैं। भगवान के लिए दिवालिये भी एक समान और श्रीमंत भी एक समान। दोनों को समान रिज़र्वेशन देते हैं! प्रश्नकर्ता: हम किस तरह निश्चित रूप से कह सकते हैं कि भगवान ने दोनों को समान रूप से ही देखा है ? ! दादाश्री : क्योंकि भगवान द्वंद्वातीत हैं, इसलिए द्वंद्व को एक्सेप्ट नहीं करते हैं। द्वंद्व, वह संसार चलाने का साधन है और भगवान द्वंद्वातीत हैं। इसलिए उस प्रकार से हम कह सकते हैं कि भगवान इसमें दोनों ही एक्सेप्ट नहीं करते हैं। व्यवहार को जो सच मानकर रहे, उन्हें प्रेशर और हार्ट अटेक और ऐसा सब हो गया और व्यवहार को झूठा मानकर रहे वे तगड़े हो गए। दोनों किनारेवाले लटक गए। व्यवहार में रहते हुए हम वीतराग हैं! सत्य खड़ा है असत्य के आधार पर.... प्रश्नकर्ता: सत्य, झूठ के आधार पर है, वह किस प्रकार से ? सत्य-असत्य के रहस्य दादाश्री : सत्य पहचाना किस तरह जाए? झूठ है तो सत्य पहचाना जाता है। इसलिए यह सत्य तो असत्य के आधार पर खड़ा रहा है और असत्य का आधार है इसलिए वह सत्य भी असत्य ही है। यह जो बाहर सत्य कहलाता है न, उसका आधार क्या है? किसलिए वह सत्य कहलाता है ? असत्य है इसलिए सत्य कहलाता है। उसे असत्य का आधार होने के कारण वह खुद भी असत्य है । परम सत् की प्राप्ति का पुरुषार्थ प्रश्नकर्ता: उस परम सत्य को प्राप्त करने के लिए मनुष्य को क्या पुरुषार्थ करना चाहिए? दादाश्री : दुनिया को जो सत्य लगता है वह सत्य आपको विपरीत लगेगा तब आप सत् की तरफ जाओगे। इसलिए कोई दो गालियाँ दे दे चंदूभाई को, तो मन में ऐसा होता है कि 'हमें यह सत् की ओर धक्का मारता है।' असत् की तरफ हरकोई धक्का मारता है, पर सत् की तरफ कौन धक्का मारे ? इस दुनिया के लोगों का जो विटामिन है, वह परम सत् प्राप्त करने के लिए ज़हर पोइजन है और इन लोगों का - दुनिया का जो पोइजन है वह परम सत् प्राप्त करने के लिए विटामिन है। क्योंकि दोनों की दृष्टि अलग है, दोनों का तरीका अलग है, दोनों की मान्यताएँ अलग हैं। प्रश्नकर्ता: कई लोग अलग-अलग रास्ते बताते हैं कि 'जप करो, तप करो, दान करो।' तो दूसरे लोग कोई नकारात्मक रास्ता बताते हैं कि 'यह नहीं करो, वह नहीं करो।' तो इनमें से सच्चा क्या है? दादाश्री : यह जप-तप-दान, वह सब सत्य कहलाता है और सत्य मतलब विनाशी ! और यदि आपको परम सत्य चाहिए तो वह सत् है और वह सत् अविनाशी होता है। सत् का ही अनुभव करने की ज़रूरत है। जो विनाशी है, उसका अनुभव बेकार है। प्रश्नकर्ता: तो परम सत्य की प्राप्ति किस तरह होती है?

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