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सत्य-असत्य के रहस्य
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वाणी नहीं, हिंसक मनन नहीं, उस दिन आपको तीन सौ साठ डिग्री हो गई होगी!
इतना ही आग्रह एक्सेप्ट
प्रश्नकर्ता: मुझे कैसा था? कि सच बोलना चाहिए, सच ही करना चाहिए, गलत नहीं करना चाहिए। यह गलत करें तो ठीक नहीं कहलाता, वैसा आग्रह था।
दादाश्री : आत्मा का हित देखना है। बाक़ी, सच बोलना भी, यह सच मतलब संसारहित है और यह सच वह आत्मा के बारे में झूठा ही है । इसलिए बहुत आग्रह नहीं करना चाहिए किसी वस्तु का आग्रह नहीं रखना। महावीर भगवान के मार्ग में जो आग्रह है न, वह सारा ज़हर है। एक आत्मा का ही आग्रह, दूसरा कोई आग्रह नहीं, आत्मा का और आत्मा के साधनों का आग्रह !
आग्रह, वही असत्य
इस जगत् में ऐसा कोई सत्य नहीं है कि जिसका आग्रह करने जैसा हो ! जिसका आग्रह किया वह सत्य ही नहीं है।
महावीर भगवान क्या कहते थे? सत्याग्रह भी नहीं होना चाहिए। सत्य का आग्रह भी नहीं होना चाहिए। सत्य का आग्रह अहंकार के बिना हो ही नहीं सकता।
आग्रह मतलब ग्रसित । सत्य का आग्रह हो या चाहे जो आग्रह हो पर वह ग्रसित हुआ कहलाता है। तो उस सत्य का आग्रह करोगे न, सत्य यदि आउट ऑफ नोर्मेलिटी हो जाएगा न, तो वह असत्य है। आग्रह रखा वह वस्तु ही सत्य नहीं है। आग्रह रखा मतलब असत्य हो गया ।
भगवान निराग्रही होते हैं, दुराग्रही नहीं होते। सत्याग्रह भी भगवान के अंदर नहीं होता। सत्याग्रह भी संसारी लोगों को ही होता है। भगवान तो निराग्रही होते हैं। हम भी निराग्रही हैं। हम झंझट में नहीं पड़ते। नहीं
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तो उसका अंत ही नहीं आए, ऐसा है।
सत्य-असत्य के रहस्य
न सत्य का, न ही असत्य का आग्रह
इस सत्य का आग्रह हम नहीं करते। क्योंकि यह सत्य एक्ज़ेक्टली नहीं है, वह गलत वस्तु भी नहीं है। पर वह रिलेटिव सत्य है और हम रियल सत्य के ऊपर ध्यान रखनेवाले हैं। रिलेटिव में सिर नहीं मारते, रिलेटिव में आग्रह नहीं होता हमें।
हमें तो सत्य का भी आग्रह नहीं है, इसलिए मुझे असत्य का आग्रह है वैसा नहीं है। किसी वस्तु का भी आग्रह नहीं होता वहाँ फिर ! असत्य का भी आग्रह नहीं चाहिए और सत्य का भी आग्रह चाहिए ही नहीं। क्योंकि सत्य-असत्य है ही नहीं कुछ। हक़ीक़त में कुछ है नहीं यह सब । यह तो रिलेटिव सत्य है। पूरा जगत् रिलेटिव सत्य में आग्रह मान बैठा है, पर रिलेटिव सत्य विनाशी है। हाँ, वह स्वभाव से ही विनाशी है।
कौन-सा सच्चा ? छोड़े वह या पकड़े वह ?
यह जो व्यवहार सत्य है, उसका आग्रह कितना भयंकर जोखिम है ? क्या सभी कबूल करते हैं, व्यवहार सत्य को ? चोर ही कबूल नहीं करेंगे, लो! कैसा लगता है आपको? उस कम्युनिटी की एक आवाज है न? ! वह सत्य ही वहाँ पर असत्य हो जाता है !!
इसलिए यह सब रिलेटिव सत्य है, कुछ भी ठिकाना नहीं है। और उस तरह के सत्य के लिए लोग मर मिटते हैं। अरे, सत् के लिए मर मिटना है। सत् अविनाशी होता है और यह सत्य तो विनाशी है।
प्रश्नकर्ता: सत् में आग्रह होता ही नहीं।
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दादाश्री : सत् में आग्रह होता ही नहीं है न! आग्रह संसार में होता है। संसार में सत्य का आग्रह होता है और सत्य के आग्रह से बाहर गए, इसलिए फिर मताग्रह कहो, कदाग्रह कहो, दुराग्रह कहो, फिर वे सभी हठाग्रह में जाते हैं।