Book Title: Satya Asatya Ke Rahasya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 15
________________ सत्य-असत्य के रहस्य सत्य-असत्य के रहस्य टिकनेवाला नहीं है, उसी तरह यह सत्य भी टिकनेवाला नहीं है। यदि आपको टिकाऊ चाहिए तो 'उस' तरफ जाओ और काम-चलाऊ चाहिए, काम-चलाऊ में आराम से रहने की जिसे आदत हो गई हो, वे इसमें रहें। क्या बुरा कहते हैं? वे तो ज्ञानियों के शब्द हैं कि भई, यह तो नाशवंत है और इसमें बहुत हाथ मत डालना, इसमें बहत रमणता मत करना। ऐसे हेतु से यह सब कहा गया है। इसलिए आपको काम-चलाऊ सख चाहिए तो रिलेटिव सत्य में ढूंढो और शाश्वत सुख चाहिए तो रियल सत्य में ढूंढो! आपको जैसा शौक हो वैसा करो। आपको विनाशी में रहना है या रियल में रहना है? प्रश्नकर्ता : रियल में रहना है। दादाश्री: ऐसा?! यानी हमारा विज्ञान कहता है कि ब्रह्म भी सत्य है और जगत् भी सत्य है। जगत् विनाशी सत्य है और ब्रह्म अविनाशी सत्य है। सभी सत्य ही है। सत्य से बाहर तो कुछ चलता ही नहीं न! आपको जब तक विनाशी पसंद हो, वह पुसाता हो, तब तक वह भी सत्य है, आप उसमें बैठो और वह विनाशी पसंद नहीं आए और आपको सनातन सुख चाहिए तो अविनाशी में आओ। विश्व में 'सत्' वस्तुएँ... इसलिए अभी तक जो भी जाना था, वह लौकिक था। लोगों का माना हुआ, वह लौकिक कहलाता है और वास्तविक अलौकिक कहलाता है। तो आपको वास्तविक जानना है या लौकिक जानना है? प्रश्नकर्ता : वास्तविक। दादाश्री : ऐसा है, अविनाशी छह तत्वों से यह जगत् बना हुआ है। प्रश्नकर्ता : पर पाँच तत्व हैं न? दादाश्री : कौन-कौन से? प्रश्नकर्ता : पृथ्वी, जल, आकाश, तेज और वायु। दादाश्री : वह आकाश तत्व तो अविनाशी है और पृथ्वी, जल, वायु और तेज विनाशी हैं। वे चार मिलकर एक तत्व होता है, वह तत्व वापिस अविनाशी है। जिसे पुद्गल परमाणु कहा गया है। वह अविनाशी है और परमाणु रूपी हैं। इसलिए ये जो चार तत्व पृथ्वी, जल, वायु और तेज हैं, वे रूपी हैं। इसलिए आपने जो पाँच तत्व कहे हैं न, वो तो दो ही तत्व हैं। इस दुनिया में इन पाँच तत्वों को मानते हैं और आत्मा को छठ्ठा तत्व मानते हैं, ऐसा नहीं है। यदि ऐसा होता तब तो कब से ही सारा निकाल हो गया होता। प्रश्नकर्ता : मतलब आपका अभिप्राय ऐसा है कि विश्व में मूल छह तत्व हैं! दादाश्री : हाँ, छह तत्व हैं और यह जगत् ही छह तत्वों का बना हुआ है। यह अंतिम बात कह रहा हूँ। आगे छानने जैसी यह बात नहीं है। यह बुद्धि की भी बात नहीं है। यह बुद्धि से बाहर की बात है, इसलिए यह छानने जैसी वस्तु नहीं है। यह हमेशा के लिए, परमानेन्ट लिख लेना हो तो लिख सकते हैं, कोई परेशानी नहीं होगी। दूसरी सभी विकल्पी बातें हैं और वह किसी ने यहाँ तक का देखा तो वहीं तक का लिखवाया, किसीने उससे आगे का देखा तो वहाँ तक का लिखवाया। पर यह तो संपूर्ण देखने के बाद का दर्शन है, और वीतरागों का दर्शन है यह ! महाव्रत भी व्यवहार सत्य ही(?) प्रश्नकर्ता : शास्त्रकारों ने सत्य को महाव्रत में रखा है न! तो वह सत्य कौन-सा कहलाता है? दादाश्री : व्यवहार सत्य! निश्चय से सब झूठ!! प्रश्नकर्ता : तो सत्य महाव्रत में इन लोगों ने क्या क्या समाविष्ट किया है? दादाश्री: जो सत्य माना जाता है उसे, और असत्य हो वह दु:खदायी होता है लोगों को।

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