Book Title: Sarva Mangal Manglyam
Author(s): Padmaratnasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
नवकार पोरिसीए, पुरिमड्ढेगासणं च आयाम;
पुंडरियं च सरंतो, फलकंखी कुणइ अभत्तट्ठ. छट्ठट्ठमदसमदुवालसाणं, मासद्धमासखवणाणं; तिगरणसुद्धो लहई, सित्तुंजं संभरंतो अ. छट्ठेणं भत्तेणं, अपाणेणं तु सत्त जत्ताई; जो कुणइ सेत्तुंजे, तइयभवे लहइ सो मुक्खं. अज्जवि दीसइ लोए, भत्तं चइऊण पुंडरियनगे; सग्गे सुहेण वच्चइ, सीलविहूणोवि होऊणं. छत्तं झयं पडागं, चामरभिंगारथालदाणेणं; विज्जाहरो अ हवइ, तह चक्की होइ रहदाणा. दस वीस तीस चत्ताल, पन्नासा पुप्फदामदाणेण; लहइ चउत्थछट्ठट्ठम-दसमदुवालसफलाई. धूवे पक्खुववासो, मासक्खमणं कपूरधूवम्मि; कित्तिय मासक्खमणं, साहू पडिलाभिए लहइ. न वि तं सुवन्नभूमि - भूसणदाणेण अन्नतित्थेसुः जं पावइ पुण्णफलं, पूआन्हवणेण सित्तुंजे. कंतार चोर सावय- समुद्ददारिद्दरोगरिउरुद्दा; मुच्चंति अविग्घेणं, जे सेत्तुंजं धरन्ति मणे.
१३२
For Private And Personal Use Only
१६
१७
१८
१९
२०
२१
२२
☹22 200
२३
२४

Page Navigation
1 ... 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180