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यजामहे स्वाहा ।।
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चतुर्थ पूजा
दुहा
शरीर पुद्गलमां वस्यो, पुद्गल मानी गेह, परभव साथ न आवतुं, क्षणमां नाशी तेह. देह अनंता छंडिया, भटकी आ संसार,
लाख चोराशी हुं भम्यो, तार तार प्रभु तार.
( सांभळजो मुनि संयम रागे, उपशम श्रेणी चढीआ रे-ए देशी)
श्री शंखेश्वर पार्श्व प्रभु नित्य, मन मंदिरमां धरीए रे, ध्यावी गावी पाप गुमावी, श्रद्धा समकित वरीए रे. श्री शंखे० १
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यादवलोकनी जरा निवारी, षड्दर्शन विख्यात रे, वामानंदन जगजनवंदन, नमतां पावन गात्र रे.
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श्री शंखे० २
पर परिणतिथी अष्टकर्म ग्रही, परभोगी परकर्ता रे, अतुलबळी कर्म पिंजरमां, वसियो निज गुण धर्ता रे.
श्री शंखे० ३
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