Book Title: Sarva Mangal Manglyam
Author(s): Padmaratnasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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शुद्धस्वरूपी ज्ञानानंदी, चेतन वास कहाय रे, सुख अनंतुं चेतन घरमां, वचन अगोचर थाय रे.
श्री शंखे०७ आत्मा थकी छूटे जब कर्म, तब पामे शिव स्थान रे, शाश्वत अमल अचलपद भावे, वास्तुकपूजा मान रे.
श्री शंखे० ८ एणीपेरे वास्तुक पूजा करशे, ते तरशे संसार रे, बुद्धिसागर क्षायिक समकित, पामी लहे भवपार रे.
श्री शंखे० ९ अथ कलश गाई गाई रे ए वास्तुक पूजा गाई, अचल अमल अभंग महोदय, शुद्ध सत्ता निज ध्यायी, समकितदायक हेते पूजा, करतां हर्ष वधाई रे.
ए वास्तुक पूजा गाई. १ मिथ्या परिणति नाशक तारक, आत्म स्वभावे सुहाई, परमातमपद प्राप्तिकारक, सुखकर समकित दाई रे. ए
वास्तुक० २ धरणेंद्र पद्मावती देवी, जेहनी सारे सेव,
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