Book Title: Sarangmuni Pranit Sukti Dwatrinshika Author(s): Amrut Patel Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ सारंगमुनि प्रणीता सूक्ति द्वात्रिंशिका ___ सं. अमृत पटेल चंद्रगच्छीय मडाहडीय शाखामां थई गयेला अने यदुसुन्दरकाव्यनां सर्जक श्रीपद्मसुन्दर गणिनां शिष्य श्रीसारंगमुनिओ जवालिपुर (जालोर)मां विक्रम संवत् १६५० मां गजनी यवनराज तरुण(?)नां राज्यकाळमां प्रस्तुत सूक्ति के सुवाक्य के सुभाषित द्वात्रिंशिकानी रचना करी छे. आ एक अपूर्व कहेवाय एवो प्रयास छे. कारण के मूळ कृति अपभ्रंशप्रधान लोकबोलीमां रचाई छे. एनी उपर कविओ पोते संस्कृतभाषामां वृत्तिनी रचना करी छे. जो के आq एक उदाहरण ध्यानमां आवे छे के लघुहरिभद्र उपाध्याय श्रीमद यशोविजयजी महाराजे जैनदर्शन मुजब द्रव्य-गुण-अने पर्यायनी मीमांसा करता "द्रव्यगुणपर्यायनो रास' नामना ग्रन्थनी रचना ढालबद्ध गुजराती भाषामां करी छे तेनी उपर संस्कृतमा वृत्ति रचाई छे. आ द्वात्रिंशिका, तेनी मंगल आर्यानी वृत्ति मुजब 'दोधक-दोहा (१३ + ११ मात्रानां बंधारणवाळा) नामनां 'जातिछन्दमां निबद्ध छे, जे प्रसिद्ध (भगण x ३ x गागा = भानस भानस भानस गागानां बंधारणवाळा) दोधक छन्दथी भिन्न छे. (भी! दोधकं । छन्दोनुशासन २/१३०). प्रस्तुत सम्पादनमा त्रण प्रतोनो उपयोग कर्यो छे. तेमां पाठान्तरो नहिवत् छे अने अमुक अशुद्धिओनुं सम्पार्जन पण अन्योन्य पाठोथी थयुं छे. एटले पाठभेदो नोध्या नथी. आ त्रण हस्तप्रतो लालभाई दलपतभाई भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर-अमदावादना हस्तप्रत भण्डारनी छे. ते त्रणेय प्रतोमा २५ x ११ c.m. नां परिमाणनां त्रण-त्रण पानां छे. तेमांथी (१) भेटसूचि २८३०८ क्रमांकनी प्रथम प्रत सटीक छे. अने पं. नयनसुन्दरगणिए लखी छे. (२) भे.स. १५२१२ क्रमांकनी बीजी-प्रतमा मात्र विवरण छे. (३) भे.सू. २०५०० क्रमांकनी त्रीजी प्रतमा मात्र मूळ कृति छे. केटलाक शब्दो अने अर्थघटनो : प्रस्तुत द्वात्रिंशिकामां केटलाक शब्दो अने वृत्तिमां करायेल अर्थ घटनो ध्यानार्ह छे. एवा केटलाक शब्दोनी सूचि आ प्रमाणे छे. शब्दनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 ... 18