Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01 Author(s): Yudhishthir Mimansak Publisher: Yudhishthir Mimansak View full book textPage 7
________________ २ . संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास व्याकरण का उद्भव और विकास' नामक एक ग्रन्थ प्रकाशित हा, उस के विषय में आगे दी जा रही तृतीय संस्करण की भूमिका में देखें। मेरा सम्पूर्ण जीवन प्रायः संघर्षमय व्यतीत हुआ। 'लक्ष्मी और सरस्वती का शाश्वतिक वैर' रूप किंवदन्ती मुझ पर भी चरितार्थ रही। विषम आर्थिक कठिनाई से जूझते हुए भी अपनी पत्नी यशोदा देवी के पूर्ण सहयोग के कारण मैं ज्ञान-सत्र को सतत चालू रखने में प्रयत्नशील रहा । आर्थिक कठिनाइयों के साथ-साथ सं० २००७ से अद्य-यावत् अनेकविध राजरोगों से पीड़ित होने, दो वार कष्टसाध्य शल्य-क्रिया (आप्रेशन) होने तथा दोनों वृक्कों (गुर्दो) की कार्यक्षमता प्रायः समाप्त हो जाने के कारण लगभग ८ वर्ष से मेरा स्वास्थ्य निरन्तर गिरता जा रहा है । शारीरिक कार्यक्षमता प्रायः समाप्त हो गई है, परन्तु जैसे किसी मादक-द्रव्य का व्यसनी व्यसन छोड़ने में असमर्थ होता है, उसी प्रकार शुभचिन्तकों एवं परिवारिक जनों के द्वारा कार्य से विरत होने की चेतावनी देने पर भी मुझे विद्यारूपी व्यसन ऐसा लगा हुआ है कि स्वास्थ के अतिक्षीण हो जाने पर भी मैं लगभग ५-६ घण्टे प्रतिदिन ग्रन्थलेखन वा शोधन आदि कार्य में लगा रहा हूं। इस के विना मुझे शान्ति नहीं मिलती । सम्भव है जैसे मादक द्रव्य का व्यसनी मादक द्रव्य के सेवन से कुछ समय के लिये उत्तेजना वा शक्ति का अनुभव करता है, उसी प्रकार मुझे भी जीवन भर विद्याव्यसनी रहने के कारण रग-रग में व्याप्त विद्या-व्यसन कार्य पर बैठते ही सशक्तसा बना देता है। बस केवल अन्तर इतना ही है कि मादक द्रव्य का व्यसन मनुष्य को निन्द्य कर्म में प्रवृत्त करता है और विद्याव्यसन शुभ कर्म में। प्रथम संस्करण के समय प्रथम भाग में केकल ४५७ पृष्ठ थे, परन्तु सतत अध्ययन के कारण इसे में प्रति संस्करण परिवर्धन होता गया। प्रस्तुत चतुर्थ संस्करण में प्रथम भाग की पृष्ठ संख्या ७२४ हो गई है अर्थात् प्रथम भाग में ३४ वर्षों के अध्ययन और मनन से २६७ पृष्ठों की उपयोगी सामग्री का संकलन हुअा है। सं० २०३० में प्रकाशित तृतीय संस्करण से कुछ समय पूर्व (जिन १. यह कठिनाई सं० २०३४ तक रही । उसके पश्चात् इस से लगभग छुटकारा मिल गया ।Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 770