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अन्तिम रूप से संशोशित परिष्कृत और परिवर्धित
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दत्त जी एवं श्री पं० बी० एच पद्नाभ राव जी प्रात्मकूर (आन्ध्र) का मुझे विशेष सहयोग मिला। _तृतीय भाग में ही सब से अन्त में मैं अपना संक्षिप्त आत्म-परिचय भी छाप रहा हूं। इस में आत्म परिचय के साथ कृतकार्य का विवरण, जिस में साहित्य-साधना और उपलब्ध पुरस्कारों का भी विवरण है, दे रहा हूं। मैंने जीवन में जो कुछ उपलब्ध किया है उस सब का श्रेय मेरे स्वर्गत माता, पिता, गुरुजनों एवं सुहृन्मित्रों को है। जिन के आशीर्वाद एवं सत्प्रेरणाएं मुझे सदा प्राप्त होती रहीं हैं।
आर्थिक सहायता- इस ग्रन्थ के मुद्रण में रा० सा० श्री चौ. प्रतापसिंह जी ने अपने 'श्री चौ० नारायण सिंह प्रतापसिंह धर्मार्थ ट्रस्ट' (करनाल) द्वारा १०००-०० एक सहस्र रुपयों की सहायता की है। उसके लिये मैं उनका आभारी हूं।
अन्त में मैं श्री प्रोङ्कारजी, जिन्होंने बड़ी तन्मयता से ग्रन्थ के मुद्रण-पत्र देखे तथा श्री पं० शिवपूजनसिंह जी कुशवाह शास्त्री एम० ए०, जिन्होंने सूचियों के निर्माण में सहायता की, का धन्यवाद करता हूं।
युधिष्ठिर मीमांसक