Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

View full book text
Previous | Next

Page 15
________________ १० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास विद्यालय काशी' की सरस्वती भवन प्रकाशनमाला की ओर से हुआ । ' अध्ययनकाल में व्याकरण मेरा प्रधान विषय रहा । प्रारम्भ से ही इसमें मेरी महती रुचि थी । इसलिये श्री माननीय पण्डितजी ने संवत् १९६४ में मुझे व्याकरणशास्त्र का इतिहास लिखने की प्रेरणा की । आपकी प्रेरणानुसार कार्य प्रारम्भ करने पर भी कार्य की महत्ता, उसके साधनों का अभाव, और अपनी योग्यता को देखकर अनेक बार मेरा मन उपरत हुआ । परन्तु आप मुझे इस कार्य के लिये निरन्तर प्रेरणा देते रहे, और अपने संस्कृत वाङ् मय के विशाल अध्ययन से संगृहीत एतद्ग्रन्थोपयोगो विविध सामग्री प्रदान कर मुझे सदा प्रोत्साहित करते रहे। आपकी प्रेरणा और प्रोत्साहन का ही फल है कि अनेक विघ्न-बाधाओं के होते हुए भी मैं इस कार्य को करने में कथंचित् समर्थ हो सका । इतिहास को काल गणना इस इतिहास में भारतीय ऐतिहासिक परम्परा के अनुसार भारतयुद्ध को विक्रम से ३०४४ वर्ष प्राचीन माना है । भारतयुद्ध से प्राचीन आचार्यों के कालनिर्धारण की समस्या बड़ी जटिल है । जब तक प्राचीन युग-परिमाण का वास्तविक स्वरूप ज्ञात न हो जाए, तब तक उसका काल- निर्धारण करना सर्वथा असम्भव है । इतना होने पर भी हमने इस ग्रन्थ में भारतयुद्ध से प्राचीन व्यक्तियों का काल दर्शाने का प्रयास किया है । इसके लिये हमने कृत युग के ४८००, त्रेता के ३६००, द्वापर के २४०० दिव्य वर्षों को सौरवर्ष * मान कर कालगणना की है । इसलिये भारतयुद्ध से प्राचीन प्राचार्यों का इस इति १. वर्तमान ( संवत् २०४१ ) में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी। २. अब वह दुष्प्राप्य हो चुका है । ३. श्री पं० भगवद्दत्तजी कृत 'भारतवर्ष का इतिहास' द्वितीय संस्करण पृष्ठ २०५-२०ε। तथा रायबहादुर चिन्तामणि वैद्य कृत 'महाभारत की मीमांसा' पृष्ठ ८९ - १४० । ४. तुलना करो - सप्तविंशतिपर्यन्ते कृत्स्ने नक्षत्रमण्डले । सप्तर्षयस्तु तिष्ठन्ति पर्यायेण शतं शतम् । सप्तर्षीणां युगं ह्येतद् दिव्यया संख्यया स्मृतम् ॥ वायु पुराण अ० १६, श्लोक ४१९ । अन्यत्र विना दिव्य विशेषण के साधारण रूप में २७०० वर्ष कहा है ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 ... 770