Book Title: Sanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 01
Author(s): Yudhishthir Mimansak
Publisher: Yudhishthir Mimansak

View full book text
Previous | Next

Page 14
________________ प्रथम संस्करण की भूमिका संस्कृत वाङमय में व्याकरण-शास्त्र अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। उसका जो वाङमय इस समय का उपलब्ध है, वह भी बहत विस्तृत है। इस शास्त्र का अभी तक कोई क्रमबद्ध इतिहास अंग्रेजी वा किसी भारतीय भाषा में प्रकाशित नहीं हुआ। चिरकाल हुआ सं० १९७२ में डा० बेल्वाल्करजी का 'सिस्टम्स् प्राफ दी संस्कृत ग्रामर' नामक एक छोटा सा निबन्ध अंग्रेजी भाषा में छपा था। संवत १९९५ में बंगला भाषा में श्री पं० गुरुपद हालदार कृत व्याकरण दर्शनेर इतिहास' नामक ग्रन्थ का प्रथम भाग प्रकाशित हुना । उसमें मुख्यतया व्याकरण-शास्त्र के दार्शनिक सिद्धान्तों का विवेचन है। अन्त के अंश में कुछ एक प्राचीन वैयाकरणों का वर्णन भी किया गया है। अतः समस्त व्याकरण-शास्त्र का क्रमबद्ध इतिहास लिखने का यह हमारा सर्व प्रथम प्रयास है। इतिहास-शास्त्र की ओर प्रवृत्ति | आर्ष ग्रन्थों के महान् वेत्ता, महावैयाकरण आचार्यवर श्री पं० ब्रह्मदत्त जिज्ञासु की, भारतीय प्राचीन वाङमय और इतिहास के उद्भट विद्वान् श्री पं० भगवद्दत्तजी के साथ पुरानी स्निग्ध मैत्री थी।' प्राचार्यवर जव कभी श्री माननीय पण्डितजी से मिलने जाया करते थे, तब वे प्रायः मुझे भी अपने साथ ले जाते थे। आप दोनों महानुभावों का जब कभी परस्पर मिलना होता था, तभी उनकी परस्पर अनेक विषयों पर महत्त्वपूर्ण शास्त्रचर्चा हुआ करती थी। मुझे उस शास्त्रचर्चा के श्रवण से अत्यन्त लाभ हुआ । इस प्रकार अपने अध्ययन काल में सं० १९८६, १९८७ में श्री माननीय पण्डितजी के संसर्ग में आने पर आपके महान् पाण्डित्य का मुझ पर विशेष प्रभाव पड़ा। और भारतीय प्राचीन ग्रन्थों के सम्पादन तथा उनके इतिहास जानने की मेरी रुचि उत्पन्न हुई, और वह रुचि उत्तरोत्तर बढ़ती गयी। आपकी प्रेरणा से मैंने सर्व प्रथम दशपादी-उणादि-वृत्ति का सम्पादन किया । यह ग्रन्थ व्याकरण के वाङमय में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण और प्राचीन है। इसका प्रकाशन संवत् १६६६ में राजकीय संस्कृत महा १. अब दोनों ही स्वर्गत हो चुके हैं ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 ... 770