________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अतिशयोक्ति नहीं है। राजनीति, धर्मशास्त्र, ज्योतिष, आयुर्वेद, धर्मशास्त्र, योगशास्त्र, अलंकारशास्त्र, व्याकरण, छंदःशास्त्र, कल्पविद्या, मंत्रविद्या, मोहिनीविद्या, वृक्षवैद्यक, अश्ववैद्यक औषधि आदि विषयों की भी चर्चा है। इसी कारण कहते है, "आग्नेये हि पुराणेऽस्मिन् सर्वा विद्याः प्रदर्शिताः" | अग्निपुराण में सभी विद्याओं का प्रतिपादन हुआ है।
अग्निमंत्रमाला - पांडिचेरी के महर्षि अरविंद ने "हिम्स टु दि मिस्टिक फायर" नामक अपने अंग्रेजी प्रबन्ध में वेदोक्त
अग्निदेवता का स्वरूप आध्यात्मिक दृष्टि से प्रतिपादन किया है। अरविंदाश्रम के पंडित जगन्नाथ वेदालंकार ने संस्कृतज्ञ लोगों के लिए इस प्रबंध का संस्कृत अनुवाद प्रस्तुत ग्रंथ के रूप में किया है। अपने अनुवाद के साथ पं. जगन्नाथजी ने वेदान्तर्गत अग्निविषयक मंत्रों का संहितापाठ,पदपाठ, श्रीअरविंदकृत अंग्रेजी शब्दार्थ, फिर उसका संस्कृत अनुवाद, भावार्थ, प्रतीकार्थ निरूपक टिप्पणियां और श्री अरविंदकृत अर्थ का समर्थन करने वाली व्याकरणविवृत्ति देकर श्री अरविंद का सिद्धान्त दृढमूल किया है। वैदिक वाङ्मय के जिज्ञासुओं के लिए यह ग्रंथ अत्यंत उपयोगी है। पृष्ठ संख्या 600। प्रकाशक- अरविंद सोसायटी पाण्डिचेरी। प्रकाशन वर्ष- 1976 । अग्निवीणा - लेखिका- डा. रमा चौधुरी (20 वीं शती) "अग्निवीणा' नामक बंगाली काव्य के सुप्रसिद्ध कवि नजरुल • इस्लाम का चरित्र इस पुस्तक का विषय है।
अग्निहोत्रप्रयोग - ले.- अनंतदेव। पिता-आपदेव (ई. 17 वीं शती)। विषय-धर्मशास्त्र। अघविवेक - ले. नीलकण्ठ दीक्षित (ई. 17 वीं शती) विषय- धर्मशास्त्र। अधोरशिवपद्धति - ले.- अधोरशिवाचार्य। शैवभूषण के अनुसार शैवाचार्यों की विविध पद्धतियों में यह अन्यतम पद्धति है। अचिन्त्यस्तवः - लेखक- नागार्जुन । विषय- भगवान बुद्ध का स्तोत्र। अच्युतम् - वाराणसी से 1933 में चण्डीप्रसाद शुक्ल के संपादकत्व में इस दार्शनिक पत्रिका का प्रकाशन हुआ। इस पत्रिका में संस्कृत के साथ हिन्दी के लेख भी प्रकाशित होते थे। यह पत्रिका अल्पकाल में बंद हुई। अच्युतचरितम् - कवि- गंगादास (पिता-गोपालदास)। 16 का सर्गों का महाकाव्य। विविध छंदों के उदाहरण प्रस्तुत करना इस ग्रंथ का मुख्य उद्देश्य है।
अच्युतेन्द्राभ्युदयम् - रचयिता- तंजौर के नायकवंशीय राजा रघुनाथ। अजडप्रमातृसिद्धिः - ले. उत्पलदेव । विषय- काश्मीरीय शैवमत का प्रतिपादन। अजपा - अजपाकल्प, अजपागायत्री, अजपागायत्रीकल्प,
अजपागायत्री-पद्धति, अजपागायत्रीमंत्र, अजपागायत्रीविधान, अजपागायत्रीविधि, अजपागायत्रीस्तोत्र, अजपाजप, अजपाजपमंत्र, अजपामंत्र, अजपाविधि, अजपास्तोत्र, अजपासाधन, अजपास्तोत्रविधि। ये सब जिस एक ही विषय का प्रतिपादन करते हैं, वह है "अजपामंत्र"। (हंसमंत्र = अहं सः) का अव्यक्त जप जो कि अद्वैत उपासना का उन्नत स्तर न्यूनाधिक है। पूर्वोक्त सभी ग्रंथ उसी मन्त्र के प्रतिपादक हैं। अजपागायत्री - (1) इसमें अजपास्तुति, आवश्यक पूर्वांगविधि के साथ, प्रतिपादित है। (2) इसमें अजपागायत्री महामन्त्र के ऋषि छन्द, देवता, बीज, शक्ति तथा हंस का हृदयकमल रूपी नीड से श्वासप्रश्वासरूप से निरन्तर चल रहा जप प्रतिपादित है। हंसगायत्री का निरूपण कर सलोम-विलोम अंगन्यास आदि भी बताए गये हैं। अजामिलोपाख्यान - (1) ले. त्रिवांकुर (केरल) के नरेश राजवर्मा कुलशेखर। (19 वीं शती) (2) ले. जयकान्त । अजित आगम - दश शैवागमों में अन्यतम। इस में पटल 62 और श्लोक दस हजार हैं। किरणागम के अनुसार इसके प्रथम श्रौता यथाक्रम सुशिव, उमेश एवं अच्युत हैं। अजीर्णामृतमंजरी - ले. धन्वन्तरि । विषय- वैद्यकशास्त्र । अज्ञानध्वान्तदीपिका - 10 प्रकाशों में पूर्ण। रचयिता म.म. महेशनाथ के पुत्र सोमनाथ। इसमें गणेश, दुर्गा, लक्ष्मी तथा विष्णु और शिव के मंत्र प्रतिपादित हैं। अणीयसी - ले. भगीरथ। यह माघ के शिशुपाल वध काव्य की अन्यतम टीका है। अणुन्यास - ले. इन्द्रमित्र। समय- 9 से 12 वीं शती के बीच। पाणिनीय व्याकरण के न्यास पर टीका।
अणुभाष्य - (1) ले. मध्वाचार्य (ई. 12-13 वीं शती) द्वैतसिद्धान्त प्रतिपादक ब्रह्मसूत्र का भाष्य। इसमें केवल 34 अनुष्टुभ् श्लोकों में ब्रह्मसूत्रों के अधिकरणों का सार द्वैत सिद्धांत के अनुसार प्रतिपादन किया है। (2) "पुष्टि-मार्ग" नामक एक भक्तिसंप्रदाय के प्रवर्तक आचार्य वल्लभ के इस ब्रह्मसूत्र भाष्य के प्रणेता हैं। यह भाष्य केवल अढाई अध्यायों पर ही है। आचार्य वल्लभ के सुपुत्र गोसाई विठ्ठलनाथ ने अंतिम डेढ अध्यायों पर भाष्य लिखकर इस ग्रंथ की पूर्ति की है।
विट्ठलनाथजी से लगभग सौ वर्ष के उपरांत पुरुषोत्तमजी ने अणुभाष्य पर भाष्यक्रम नामक पांडित्यपूर्ण व्याख्यान लिखा। यह वल्लभसंप्रदायी अणुभाष्य की सर्वप्रथम तथा सर्वोत्तम व्याख्या मानी जाती है। अणुभाष्य के व्याख्याकारों में मथुरानाथ
और मुरलीधरजी यह पंडितद्वय उल्लेखनीय हैं जिन्होंने क्रमशः "प्रकाश" तथा "सिद्धांत-प्रदीप" नामक व्याख्यायें लिखी हैं।
प्रतीत होता है कि मूलतः यह ग्रंथ पूर्ण ही था किन्तु
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथ खण्ड /3
For Private and Personal Use Only