Book Title: Sanskrit Sopanam Part 04
Author(s): Surendra Gambhir
Publisher: Pitambar Publishing Company

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Page 87
________________ Teaching Point: Revision जीराव द्वाविंशतितमः सूक्तयः पाठ: विप्र नि+बुध् प्रवद् मनीषिन्न परिकीर्त जठर स्वत्वम् देहिन् (ऋग्वेदः) (यजुर्वेदः) 27 (सामवेदः) (अथर्ववेदः) (शतपथब्राह्मणम्) (शतपथब्राह्मणम्) 1. एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति 2. भूत्यै जागरणम् अभूत्यै स्वपनम् 3. देवस्य पश्य काव्यम् 4. जीवेम शरदः शतम् 5. संगनमो वै क्रूरम् श्रीर्वै राष्ट्रम् असतो मा सद गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्माऽमृतं गमय। 8. यो वै भूमा तत्सुखम् नाल्पे सुखमस्ति न वित्तेन तर्पणीयो मनुष्यः 10. जाग्रत प्राप्य वरान् निबोधत 11. मन्त्रमूलं च विजयं प्रवदन्ति मनीषिण : 12. एकश्च अर्थान् न चिन्तयेत् संभावितस्य चाकीर्ति: मरणाद् अतिरिच्यते मन्त्र-रक्षणे कार्य-सिद्धिर्भवति न दत्वा परिकीर्तयेत् 16. आत्मनमेव मन्येत कर्तारं सुख-दुःखयो 17. यावद् भ्रियेत जठरं तावत् स्वत्वं हि देहिनाम् 18. पुराणमित्येव न साधु सर्वम् 13. (बृहदारण्यकोपनिषद्) (छान्दोग्योपनिषद्) (कठोपनिषद्) (कठोपनिषद्) (रामायणम्) (महाभारतम्) (गीता) (कौटिल्याशास्त्रम्) (मनुस्मृतिः) (चरक-संहिता) (श्रीमद्भागवतम्) (मालविकाग्निमित्रम्) 15. 82

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