Book Title: Sangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth Author(s): Jinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak View full book textPage 9
________________ -49. अथ श्री संघपक: AAAAA. MARA अने श्रावकोने थूकवा वगेरेनी मनाई करवामां आवे बे एम निश्रारहित विधिए करेला वीरप्रजुना श्रा चैत्यालय माटे फरमान करवामां आवे बे. इह न खलु निषेधः कस्यचि बंदनादौ, श्रुतविधि बहुमानी त्वत्र सर्वाधिकारी; त्रिचतुरजन दृष्ट्या चात्र चैत्यार्थ वृद्धि, व्यय विनिमय रक्षा चैत्य कृत्यादि कार्य जावार्थः-इहां कोइने पण दर्शन पूजन करवा माटे ना पामवामां आवनार नथी; वळी सूत्रनी विधिने मान आपनार हरकोइ माणसने इहां अधिकारी तरीके गणवामां आवशे; तेमज श्रा देरासरना पैशाने त्रण चार जणानी नजर हेठे व्याजे धीरी वधारवा, खरचवा, नथल पाथल करवा, संनाळी राखवा, तथा देरासरना कामकाज करवानुं फरमाववामां आवे बे. ___ आबे श्लोकपरथी खुब्यु जणाय डे के तेमणे बहुज महापण जरेला नियमो त्यां कोतराव्या बे. श्रा रीते आ संघपटक नामनो ग्रंथ रचवामां आव्यो तथा चीतोममा विधि चैत्य नहुँ थयुं एटले श्री जिनवानसूरिपर चैत्यवासिव अतिशय गुस्से थर पांचसो जण लाकमोन लश् तेमने मार मारवा तेमना मुकामे श्राव्या, परंतु चीतोमना राणाए तेमने तेम करतां अटकाव्या. ___तेम तां जिनवराजसरिए हिम्मत राखो आखी मारवाममाPage Navigation
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