Book Title: Sangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Author(s): Jinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ (१०) * अथ श्री संघपट्टकः - तेमने उघामा पानी तेमने जेटला बने एटला जांखा पाया. श्र ते एम चैत्यवास खंरुन माटे या संघपट्टक नामे ग्रंथरूपी म हेल चणीने जो कर्यो. बाद तेमना माटे महा प्रतापी श्री जिनदत्तसूरि दादा थया, तेमणे विद्याना चमत्कारथी मोटा मोटा श्रावकोने पोताना पक्षमां लइ चैत्यवा सिर्जना चैत्याने अनायतन एटले पेशवाने योग्य ठरावी पोताना गुरुए चणेला महेलपर कळशारोपण कर्यु. जिनदत्तसूरिए घणा रजपूताने प्रतिबोधी नवा श्रावक कर्या ते दादाजी तरीके आज लगण ओळखाय बे. त्यार के प्रवखुशिळीने न्याय निपुण श्री जिनपत्तिसूरि पेदा थया. तेमणे पूरा जोसथी चैत्यवासिश्रोने खोखरा करवा मांड्या, छाने श्री जिनसूरिए रचेला संघपट्टक उपर त्रण हजार श्लोक प्रमाणनी न्यायथी नरपुर मोटी टीका रची, जिनवल्लनसूरिए चणेला महे लने चुनाथ बोबंध करी तेने अतिशय टकाउ कर्यो; ते उपरांत एमणे चोराशी वादस्थळ करीने पोतानी प्रथाग बुद्धि जगजाहेर करी बे. सदरहु जिनपतिसूरिना प्रतिबोधित नेमिचंद्र नांमागारिक नामना पाटणना निवासी श्रावक पण एटला महाविद्वान् थया के तेमणे प्राकृत जावामां एकसो साठ गाथानो षष्टिशतक नामे विधिमार्ग उत्तम ग्रंथ रची चैत्यवासिखोने दिग्मूढ कर्या. श्रा रीते नेमिचंद्रनंमारिए जिनवल्ल नसूरिए चणेला महेलपर धजा फरकती करी. बाद सदरहु नेमिचंद्रजंगारोना पुत्रे जिनपत्तिसूरि पाले दीक्षा लर जिनेश्वरसूरि नाम धारण कर्यु- तेमना शिष्ये जिनदनसूरिए

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 704