Book Title: Sangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Author(s): Jinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak
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अथ श्री संघपट्टका
(११)
रचेली संदेहदो'लावली नामना ग्रंथउपर टीका रची तेमां चैत्यवासिओना चैत्योने न्याय पुरस्सर अनायतन ठरावी जिनवबन्ने चणेला महेलने फरतो किबो बांध्यो.
आ रीते पेहेला जिनेश्वरसूरि के जेथोए सं. १४ मां चैत्यवासियोने पहेल प्रथम हराव्या त्यारथी मामीने तेमना वंशना आचार्योए ठेठ सं. १४६६ लगी तेमनो पराजय करवो चालु राख्यो. थाथी करीने मारवाममां सघळा स्थळे तेमनी जममुळ नखमी गइ अने वसतिवासीोनो विजयको वाग्यो.
श्राणीमेर गुजरातमां तो मुळथी ज तेमनुं जोर कमती हतुं बतां मुनिचंडसूरिए तेमने सऊमरीते उखेमवा मांगया हता अने त्यार के पुनमिया गाना आचार्यों उठया, बीजी तरफ आंचfळक नग्या, त्रीजा श्रागमिक गठया अने तेमना केमे तथा सोमसुंदरसूरिना शिष्य मुनिसुंदरसूरिए बाकी रहेला चैत्यवासियोने पुरती रीते पायमाल करी श्राखी गुजरात, तथा सौराष्ट्र, अने माळवामां वसतिवासि मुनिश्रोनो विजयनाद वगाड्यो.
श्रा रीते विक्रमनी पंदरमी सदीना आखरे चैत्यवासनुं जोर तूटयुं, अने फरीने वसतिवासियोनी मान्यता वधी. एम वीरप्रनुना निर्वाणथी एक हजार वर्ष वीत्या बाद जोर पर चमेलो चैत्यवास लगनग एक हजार वर्ष लगी चालीने पालो सदंतर बंध पड्यो तेनी हिमायतमां रचायली नियमोनी नपनिषदो गुम थई भने फरीने निर्मथप्रवचन विकाशमान थवा लाग्यो.
परंतु काळनो महिमा विचित्र डे एटले के जे आचार्योए कमर

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