Book Title: Sangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Author(s): Jinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak

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Page 12
________________ (१२) 4. अथ श्री संघपट्टका कसी चैत्यवास तोड्यो तेमना ज वंशजो फरीने शिथिलाचारमा हमणा पाला फसी पड्या बे. ते हाल पोताने गोरजीना नामे उलखावे के अने जो के ते चैत्यमां-निवास नथी करता तोपण चैत्यना पमखे बांधेला अपासरारुप मठमां रहीने हाल मठवासी बनेला बे, ते मांजे समजु ले ते पोताना शिथिलाचारने पोतानो प्रमाद जणावी सत्यमार्गने पूषित नथी करता, पण अणसमजु वर्ग एम समजे ले के था मठवास तो अमारी असल परंपराथी ज चाल्यो श्रावे ले तो तेवा जनोने सत्य वात जणाववा खातर आ संघपट्टक तथा तेनी टीकार्नु नाषांतर उपावी प्रसिक करवामां आवे बे. वळी आजकालना वसतिवासि मुनि पण गृहस्थना घरनी वसति नहि शोधतां खास करीने तेमने उतरवा माटे ज बंधावेली धर्मशाळाउंमां नतरे वे ए पण एक जातनो तेमनो प्रमाद ज . केमके तेमना पूर्वगुरुनए तेम करवा पण अनुज्ञा आपी नथ कारणके एवी धर्मशाळायो आधाकर्मिदोषक्षित ने हवे श्रा समये पूर्वना माफक वनवास के वसतिवास करवो ए अलबत कठण काम बे, तोपण श्रावा ग्रंथो आद्योपांत वांचवाथी एटली असर तो जरुर थशे के समजु मुनियो पोताना ए प्रमादने पोतानी जूल तरीके ज कबूल राखी खरा वसतिवासना निंदक के सोही नहि थशे. कारण के शास्त्रमा कहेलु डे के. धन्नाणं विदिजोगो-विहिपकारादगा सया धन्ना, विदिबहुमाणी धन्ना-विदिपरकपइसगा धन्नाः १

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