Book Title: Sangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Author(s): Jinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak
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4 अथ श्री संघपट्टकः
तेम कायम राख्युं बे. बतां बीजी यावृत्ति कहारुवानो प्रसंग याव शे तो वर्त्तमान भाषाशैलीने अनुसरतुं जाषांतर उपाववानो ज - मारो इरादो .
(१४)
टीकाना मूलपाठने तथा भाषांतरने श्रमे श्रमाराथी बने तेटलो प्रयास लइ शुद्ध करावी बपाव्यां बे, बतां तेमां असल प्रतनी शुद्धिना कारणे तथा प्रुफ तपाशनारनी नजर चूकना कारणे जे कंड जूलो रही बे ते माटे सुइ वाचकोने विनंति करवामां आवे छे केते ते बाबत मारापर क्षमा करीने ते सुधारी वांचवी. कार
के श्राश्रमारी प्रथमावृत्ति वे एटले तेमां अवश्य भूल चूक रहे. माटे ते दरगुजर करी सुइ वांचको आा पुस्तक वांची तेमांथी सार ग्रहण करी विधिमार्गना रागी थइ सद्गुणो तरफ आकर्षित थशे तो मारो प्रयास सफळ थयो गणीभुं.
आजकाल लोकोनी दृष्टि रास वगेरे कथानिक ग्रंथो उपर वधती दोने बे, पण खरी रीते तो श्रावा चाबुक समान पुस्तको वांचवामां ज वधु फायदो मळे बे. केमके कद्देवत बे के " करुवे उसम विन पिए मिटे न तनको ताप " माटे प्रमादरुप तावने उतारवा खातर यावा कटुकौषधसमान बतां परिणामे तावने दूर करी श्रारोग्यता आपनार उत्तम ग्रंथो दरेक जणे अवश्य वांचवा तथा विचारवा जोइये.
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मां पण मुख्यत्वे करीने आजकालना यतिओ तथा मुनिश्रोए तो खास व्याख्यानमां ज श्रावा ग्रंथो वांचीने जोळा लोकोने सीधे मार्गे दोरवा जोश्ये.

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