Book Title: Sangh Pattak - 40 Kavyano Attyuttam Shikshamay Granth
Author(s): Jinvallabhsuri, Nemichandra Bhandagarik
Publisher: Jethalal Dalsukh Shravak

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Page 7
________________ -48 अथ श्री संघपट्टकः -- (७) मुख्य जाग हमेशां जोळो रहे बे. तेथी तेवा जोळाधोने, कपटी वेषधारी चैन्यवासियो अनेक बाढानां ना करीने ठगवा मांगया. श्रावी गमबम थोमाज वखतमां बहु वधी पी एटले देवझिंग बिना पढी २५ वर्षे स्वर्गवासी थएला दरिनप्रसूरिए महानिशीथनो नकार करतां चैत्यवासनो सारी रीते तिरस्कार कर्यो बे. सदरहु दरिद्रसूरि चैत्यवासिश्रोना मंगळमां दीक्षित थया दता तां परम विद्वान् होवाथी तेमणे तेमना पनुं खुब खंमन कयुं बे. श्री मामलो एटले लगण वध्यो के निर्गंथ मार्ग विरलप्राय rs पयो, निर्गंथ प्रवचनपर ताळां देवायां ने कपोल कल्पित ग्रंथो तेमनी जग्याए नजा करवामां श्राव्या, एटलुंज नहि पण संवत् ८०१ नी सालमां वनराज चावकार ज्यारे दिलपुर पाट वसाव्यं त्यारे तेमना चैत्यवासि गुरु शीळगुणसूरिए तेना पासेबी वो रुक्को लखावी लीधोके या राजनगरमां श्रमारा पदना यतिधो सिवाय वसतिवासि साधुखोने दाखल थवा नहि देवा. ते रुक्काने तोरुवा माटे जयदेवसूरिना गुरु जिनेश्वरसूरि तथा बुद्धिसागरसुरिए सं. १००४ मां डुर्लजदेवनी सजामां चैत्यवासियो साथै विवाद करी जय मेळव्या, त्यारथीज पाट मां वसतिवा सियोनी यावजाव शरु थ. श्रा रीते चैत्यवासिनी पेहेली दार जिनेश्वरसूरिए करी बतां जु मारवाकमां तेमनुं जारे जोर रह्युं दतुं ते जोर तोकवा तेमना अशिष्य जिनवल्लज सूरिखमा थया. तेमणे आगमना पहने अनुसरी पोतानी अद्भुत कवित्वश चिना बळे युक्तिपुरस्सर तेमनुं खंकन करवा

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