Book Title: Sanatkumar Charitra Author(s): Vardhmansuri, Hiralal Hansraj Publisher: Shravak Hiralal Hansraj View full book textPage 9
________________ सान्वय भाषान्तर C ॥ ९ ॥ सनत्कुमार | द्विषद्विखण्डिताङ्गस्य पुरुषस्य पुरः स्थिता । चक्रन्द सा रसाधिक्यविकसत्करुणस्वरा ॥ २६ ॥ चरित्रं __अन्वयः-रस आधिक्य विकसत् करुण स्वरा सा द्विषत् विखंडित अंगस्य पुरुषस्य पुरः स्थिता चक्रंद. ॥ २६ ॥ अर्थ:-रसना अधिकपणाथी विस्तार पामतो छ करुण स्वर जेणीनो, एवी ते स्त्री, शत्रुथी घायल थयेल छे शरीर जेजें, एका ते पुरुषनी पासे बेसीने विलाप करवा लागी. ॥ २६॥ किं चरित्रमिदं चित्रमिति पृष्टाथ तेन सा । ऊचेऽधरोष्टं सिञ्चन्ती शुचा शुष्यन्तमश्रुभिः ॥ २७ ॥ अन्वया-अथ इदं चित्रं चरित्रं किं ? इति तेन पृष्टा सा शुचा शुष्यंत अधरोष्ठं अश्रुभिः सिंचती ऊचे. ॥ २७ ॥ अर्थः-पछी आ आश्चर्यकारक वृत्तांत शुं छे ? एम ते राजकुमारे पूछवाथी ते स्त्री शोकथी सूकाइ जता (पोताना) बन्ने होठोने आंसुओवडे सिंचतीथकी बोलवा लागी के, ॥ २७ ॥ शोणरत्नप्रभापूरसिन्दूरचयचित्रितः । गिरिवैताढ्य इत्यस्ति श्री लीलारौप्यहस्तिवत् ॥ २८ ॥ अन्वयः-शोण रत्न प्रभापूर सिंदूर चय चित्रितः, श्रीलीला रौप्य हस्तिवत् वैतात्यः इति गिरिः अस्ति. ॥ २८ ॥ अर्थः-लाल रत्नोनी कांतिना सहूहरूपी सिंदूरना समृहवडे चित्रेलो, लक्ष्मीदेवीने रमवाना रूपाना हाथीसरखो वैतायनामे पर्वत छे. | तस्योपरि परिस्पन्दलक्ष्मीमन्दमरुत्पुरी । विशालाख्या विशालाक्षीमुखापास्तेन्दुरस्ति पूः ॥ २९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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