Book Title: Sanatkumar Charitra
Author(s): Vardhmansuri, Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 11
________________ सान्वय भाषान्तर सनत्कुमार ट। (दुष्टे ) हरी लीधी के. ॥ ३२ ॥ चरित्रं अवस्थेयं कृता तेन मद्भर्तुरनुधावतः। दुश्चरित्रफलं वीर त्वयास्येदं च दर्शितम् ॥ ३३ ॥ अन्वयः-अनुधावतः मद्भर्तुः तेन इयं अवस्था कृता, च ( हे ) वीर! अस्य त्वया इदं दुश्चरित्र फलं दर्शितं ॥ ३३ ॥ ॥११॥ अर्थः-पाछळ दोडता एवा मारा स्वामीना तेणे आवा हाल कर्या छे, परंतु हे वीर! ते (दुष्टने ) तमोए आ (तेना) दुराचरणनुं फळ देखाड्यु ( चखाड्यु) छे. ॥ ३३ ॥ इत्युक्त्वेयं कुमाराय प्रियप्राणितकांक्षिणी । आदिक्षदौषधीः सद्यो मूर्छाशतकृतच्छिदः ॥ ३४ ॥ ___ अन्वयः-इति उक्त्वा मिय प्राणित काक्षिणी इयं मूर्छा शत कृत च्छिदः औषधीः सद्यः कुमाराय आदिक्षत् ॥ ३४ ॥ अर्थः-एम कहीने पोताना स्वामिने जीवाडवानी इच्छाथी तेणीए, सेंकडो मूर्छाओनो जेथी विनाश थयो छे, एवी औषधीओ तुरत ते राजकुमारने जाहेर करी. ॥ ३४॥ अथैनमोषधिस्यन्दैरमन्दीकुरुते स्म सः। कुमारः कैरवस्तोममिव सोमः करोत्करैः ॥ ३५॥ ___ अन्वयः-अथ सोमः कर उत्करैः कैरव स्तोमं इव, सः कुमारः ओषधिस्यंदैः एनं अमंदी कुरुते स. ॥ ३५ ॥ अर्थः-पछी चंद्र (पोताना) किरणोना समूहोवडे जेम चंद्रविकासी कमलोना समूहने जागृत करे, तेम ते कुमारे ते औषधीना |8| टीपांओथी ते रत्नचूड विद्याधरने साजो करी जागृत कर्यो. ॥ ३५ ॥ MLOCALMAGARSASURES Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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