Book Title: Sanatkumar Charitra
Author(s): Vardhmansuri, Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
View full book text
________________
सान्वय
भाषान्तर
॥१३॥
सनत्कुमारता ___ अन्वयः-पर स्त्री परिरंभेण यः सुखस्य समारंभः, शीत अभः स्नपनेन ज्वर दाह व्यपोहनं इव. ॥ ३९॥
अर्थः-परस्त्रीना आलिंगनवडे जे सुखनो प्रारंभ करवो, ते ठंडा पाणीना स्नानथी तावनी बळतराने दूर करवा जेवू छे. ॥ ३९ ॥ चरित्रं
परनार्यों विभावर्य इवाकीर्तितमःप्रदाः । अदृष्टसत्पथान्पुंसः क्षिपन्ति नरकावटे ॥ ४०॥
अन्वयः-परनार्यः विभावर्यः इव अकीर्ति तमः पदाः, अदृष्ट सत्पथान पुंसः नरक अवटे क्षिपंति. ॥ ४० ॥ अर्थः-परस्त्रीओ रात्रिनीपेठे अपकीर्तिरूपी अंधकारने आपनारी छे, (तथा तेथी) सत्य मार्गने नही देखता एवा पुरुषोने तेओ नरकरूपी खाडामा पटकी पाडे छे. ॥ ४० ॥ . घाताधःकारबन्धातिर्मदान्धैर्बुध्यते न कैः । ब्रजद्भिः परनारीषु वारीष्विव मतङ्गजैः ॥ ४१ ॥
अन्वयः-वारीषु इव मतंगजैः, परनारीषु व्रजद्भिः कैः मदांधैः घात अधःकार बंधातिः न बुध्यते ? ॥४१॥ अर्थः–वारी एटले पकडवामाटेना खाडामा फसाइ पडता हाथीओनीपेठे परस्त्रीपते गमन करता एवा कया मदांध पुरुषो घात, तिरस्कार, तथा बंधननु दुःख नथी अनुभवता ? (अर्थात् सर्व कोइ अनुभवेज छे.) ॥४१॥
ततः खदारसंतुष्टिः पुण्यपुष्टिरसायनम् । सेवनीया सदा पुम्भिः गुणकुम्भिमहाटवी ॥४२॥ ___ अन्वयः-ततः पुंभिः सदा पुण्य पुष्टि रसायनं, गुण कुंमि महाटवी स्वदार संतुष्टिः सेवनीया. ॥४२॥ ___ अर्थः-माटे पुरुषोए हमेशां पुण्योने पोषवामा रसायन सरखो, तथा गुणोरूपी हाथीओने रहेवामाटे विशाल वनसरखो पोतानी
55-5455555
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 228