Book Title: Sanatkumar Charitra
Author(s): Vardhmansuri, Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 12
________________ सान्वय सनत्कुमार चरित्र भाषान्तर ॥१२॥ R ॥१२॥ ततः कृपावतारेण कुमारेणोषधीरसैः। चन्द्रोऽप्यजीवि कारुण्यं महतां प्रहतान्तरम् ॥ ३६॥ ___ अन्धयः-ततः कृपा अवतारेण कुमारेण औषधी रसैः चंद्रः अपि अजीवि, महतां कारुण्यं प्रहत अंतरं.. ॥ ३६॥ अर्थः-पछी दयाना अवताररूप एवा ते कुमारे औषधीओना रसथी (ते ) चंद्रविद्याधरने पण जीवाड्यो, केमके महानपुरुषोनी दया (कंई) अंतर राखती नथी. ॥ ३६ ।। ततो वर्णविवेकाब्धिमौक्तिकथितां गिरम् । कुमारो हृदि चन्द्रस्य हारहृद्यामिति न्यधात् ॥३७॥ ___ अन्वयः-ततः कुमारः विवेक अब्धि मौक्तिकैः वर्णैः प्रथितां हारहृया इति गिरं चंद्रस्य हृदि न्यधात् ॥३७॥ अर्थः-पछी (ते) कुमारे विवेकरूपी समुद्रमांथी (निकळेली) मोतीओसरखा अक्षरोबडे गुंथेली मनोहर हारजेत्री आवी रीतनी वाणी (ते) चंद्रविद्याधरना हृदयमा पहेरावी. (तेने समजाव्यो) ॥ ३७ ।। ते हन्ति पुण्यं पुष्णाति पातकम् । अहो हृतं परस्त्रैणं कुथितान्नमिवाहृतम् ॥ ३८॥ ___ अन्वयः-अहो ! परस्त्रैणं हृतं आहृतं कुथित अन्न इव, निर्वृति न दत्ते, पुण्यं हंति, पातकं पुष्णाति. ॥ ३८॥ अर्थः-अहो! परस्त्रीहरण, खाधेला सडेला अनाजनीपेठे सुख आपतुं नथी, पुण्यनो नाश करे छे, तथा पापोनी पुष्टि करे छे. परस्त्रीपरिरम्भेण समारम्भः सुखस्य यः । शीताम्भःस्नपनेनेव ज्वरदाहव्यपोहनम् ॥ ३९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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