Book Title: Sanatkumar Charitra
Author(s): Vardhmansuri, Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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सनत्कुमार
सान्वय
चरित्रं
भाषान्तर
॥१०॥
अन्वयः-तस्य उपरि परिस्पंदन लक्ष्मी मंद मरुत्पुरी, विशाल अलि मुख अपास्त इंदुः विशालाख्या पू: अस्ति. ॥ २९ ॥ अर्थः--ते पर्वत उपर उभराइ जती लक्ष्मीथी निस्तेज थइ छे देवनगरी जेनाथी, तथा विस्तीर्ण नेत्रोवाळी स्त्रीना मुखथी तिरस्कार पामेल छे चंद्र ज्या एवी विशालानामनी नगरी छे. ॥ २९ ॥ तत्रैष रत्नचूडाख्यो राजा खेलति खेचरः । अस्य प्रियास्मि कश्मीरदेवीति प्रीतिभाजनम् ॥ ३०॥
अन्वयः-तत्र एषः रत्नचूड आख्यः खेचरः राजा खेलति, अस्य प्रीति भाजनं कश्मीरदेवी इति प्रिया असि. ॥ ३० ॥ अर्थः-ते नगरीमा आ रत्नचूडनामनो विद्याधर राजातरीके क्रीडा करे छे, अने तेनी प्रीतिना पात्ररूप कश्मीरदेवीनामे हुं पत्नीछु
दुष्टश्चन्द्रपुरीभर्ता चन्द्राख्योऽयं तु खेचरः । मया स्मररहस्यानि याचमानोऽवमानितः ॥ ३१ ॥ ___अन्वयः-अयं तु चंद्रपुरी भर्ता चंद्राख्यः दुष्टः खेचरः स्मर रहस्यानि याचमानः मया अवमानितः ॥ ३१ ॥
अर्थः-अने आ चंद्रपुरीनामनी नगरीनो राजा चंद्रनामनो दुष्ट विद्याधर छे, तेणे मारीसाथे भोग विलासनी मागणी करतां में तेनो तिरस्कार को छे. ॥ ३१ ॥ रविणा कौमुदीवेन्दोस्ततः पत्युः समीपतः। तेजःक्रूरेण शृरेण हृताहममुनाधुना ॥ ३२ ॥
अन्वयः-तेजः क्रूरेण शूरेण रविणा इन्दोः कौमुदी इव ततः पत्युः समीपतः अहं अधुना अमुना हृता. ॥ ३२ ॥ 13। अर्थः-तेजथी क्रूर, तथा बलवान एवो सूर्य चंद्रपासेथी जेम चांदनीने हरी ले, तेम ( मारा ) ते पतिपासेथी मने हमणांज आ ||
PROGRACCORDICAsaree
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