Book Title: Samyaktva Mul Bar Vratni Tip
Author(s): Udyotsagar Gani
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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द्वादश अतिथिसंविनाग व्रतं. -१५७ अथवा अयोग्य अव्यथी नाजन खरड्यु होय, एवा नाजनथी आहारादिक आपे, साधु ले, त्यारें म्रक्षितदोष लागे,
३त्रीजो निक्षिप्तदोष. ते जे माटी, पाणी प्रमुख हरेक स चित्त वस्तुनो स्पर्श करीने अथवा परस्पर संघट्ट थवाथी अचि त्त थाय, एवो आहार ले, ते त्रीजो निक्षिप्तदोष.
चोयो पिहितदोषः ते एके, १ सचित्त वस्तु अचित्त वस्तु यें ढांकी होय, २ सचित्त वस्तु सचित्त वस्तुयें ढांकी होय, ३ अचित्तवस्तु सचित्त वस्तुयें ढांकी होय, ४ अने अचित्त वस्तु, अचित्तवस्तुयें ढांकी होय. ए चार नांगामां चोथो नांगो शु कडे अने बाकीना त्रण नांगा अशुकले, एमाटे ए त्रण नांगे
आहार ले, त्यारे पिहितदोष लागे. ___पांचमो संहृदोष. ते जे आहार आपवाना वाशणमां अ योग्य वस्तु नरी होय, ते वस्तु बीजा वाशणमां नाखीने पी तेज वाशणश्री आहार आपे, ते पांचमो संढदोष.
६बको दायकदोष. ते जे नपुंसक, बालक, अतिवृक्ष, आंध लो, पांगलो, कंपवायुथी जेनो देह कंपतो होय ते, जेना पगमां शंखला, बेडी प्रमुख जडी होय ते, धान्यने खांमतो होय ते, धा न्यने दलतो होय ते, धान्यने नुसतो होय ते, चरखा चरखी फेर वतो होय ते, कपास लोढतो होय ते, कपासने कालामांथी बूटो पाडतो होय, वलोणुं वलोवतो होय, जमतो होय, उकायना
आरंजनुं कार्य करतो होय, सात मास उपरांत गर्भवती स्त्री होय, बालकने धवरावती स्त्री होय, अने जे स्त्रीनुं बालक रडतुं होय, तेने पडतुं मूकीने. ए उपर कहेली क्रियामांनी हरको क्रिया करतां जे दातार आहार आपे, तेवा योगनो आहार साधु न लीये; अने जो ले, तो दायकदोष लागे.
सातमो जन्मिश्रदोष. ते योग्य आहारने अयोग्य थाहा

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