Book Title: Samyak Charitra Chintaman
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 2
________________ प्रकाशाकीय सन् १९८३-८४ में वीर-सेवा-मन्दिर-ट्रस्ट से हमने आठ ग्रन्थोंका प्रकाशन किया था, जो सभी महत्त्वपूर्ण रहे। इनमें समाधिमरणो. स्साहदोपकका द्वितीय संस्करण था। शेष सातों ग्रन्थ इतःपूर्व अप्रकाशित रचनाएँ थीं। इस दृष्टिसे यह बर्ष ट्रस्टके इतिहासमें अभूतपूर्व और सुखद रहा । संयोगसे साढ़े पांच हजार रुपयोंका आर्थिक सहयोग भी प्राप्त हुआ। १६८५-८६ में हम कोई ग्रन्थ पाठकोंको नहीं दे पाये, इसके मुख्य कारण थे- बनारस छोड़कर श्रीमहावोरजो जाना और वहाँ के जनविद्या-संस्थान में चल रहे पुराण कोषके कार्य में मानद सहयोग करना तथा १८ दिसम्बर १६८५ को मेरी सहमिणो श्रीमती चमेलोबाई कोठियाका टीकमगढ़ (म.प्र.) में श्वासका उपचार कराते हुए देहावसान हो जाना। फिर भी हमने १९८६-८७ में करणानुयोग प्रवेशिका, चरणानुयोग प्रवेशिका और द्रव्यानुयोग प्रवेशिका इन तीन ग्रन्थोंका पुनर्मुद्रण कराया, जिनको पाठकों द्वारा अधिक माग हो रही थी। ___ डॉ० भागचन्द्रजी भास्कर' के सम्पादकत्व में 'चंयहचरित' का जयपुरसे मुद्रण कराने में अवश्य दो-ढाई वर्षका समय लगा और उसे पाठकोंके समक्ष हम विलम्बसे रख पाये, जिसके लिए क्षमा-प्रार्थी हैं। आज हमें समाजके ख्यातिप्राप्त विद्वान डॉ. पं० पन्नालालजी साहित्याचार्यको संस्कृत में रचित और उन्हींके द्वारा राष्ट्रभाषा हिन्दी में अनूदित सैद्धान्तिक कृति 'सम्यक-चारित्र-चिन्तामणि' का प्रकाशन करते हुए हर्ष हो रहा है। यह चरणानुयोगसे सम्बन्धित साधु और श्रावकके आचारको प्रतिपादिका एक महत्वपूर्ण एवं मौलिक रचना है। आशा है उनकी यह कृति मुनि वृन्दों और श्रावकों के लिए बड़ी उपयोगी सिद्ध होगो और वे इसे चावसे पढ़ेंगे तथा अपने आचारको समृद्ध बनायेंगे। स्मरणीय है कि साहित्याचार्यजी द्वारा रचित सम्यक्त्वचिन्तामणि और सम्यग्ज्ञान-चिन्तामणि ये दो रचनाएं ट्रस्टसे पहले प्रकाशित हो चुकी हैं, जो पाठकोंके लिए बहुत पसन्द आयी हैं और पर्याप्त समादृत हुई हैं।

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