Book Title: Samyak Charitra Chintaman
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 9
________________ ( ११ ॥ संघ संचालन के लिए बे धन-संग्रह करतो हैं और न केवल संघ-साधुओं पर, संघ के आचार्यपर भी अपना वर्चस्व रखतो देखो जाती हैं। यह सर्वदा आगम विरुद्ध कार्य है । जन साधुओं की पुरानो परम्परामें ऐसा एक भो उदाहरण नहीं है कि महिलाएं संघ-संचालन करतो हों धन संग्रह करतो हों और संघस्थ साधुओंके आहार के लिए चौकेकी व्यवस्था करतो हों। (ब) इसो तृतीय प्रकाशमें अपरिग्रह महावतका स्वरूप निर्देश करते हुए विद्वान लेखकने श्लोक संख्या ६३ से १०० तकके अर्थ में लिखा है कि जो मनुष्य पहिले परिग्रहका त्यागकर निर्ग्रन्थताको स्वोकारकर पोछे किसो कार्य के व्याज ( बहाने ) से परिग्रहको स्वीकार करता है वह कूपसे निकलकर पुनः उसी कूपमें गिरनेके लिए उद्यत है...। दिगम्बर मुद्राको धारणकर जो परिग्रहको स्वीकार करते हैं उनका नरक-निगोदमें जाना सुनिश्चित है। ... "यदि निर्ग्रन्थ दोक्षा धारण करने को तुम्हारो सामथ्र्य नहीं है तो हे भव्योत्तम! तुम श्रद्धामात्र धारण कर संतुष्ट रहो। इस प्रकरण में लेखकने वर्तमान जैन साधुओंमें शिथिलाचारको बढ़ती हुई प्रवृत्ति पर दुख प्रगट करते हुए उसके निषेध करने के लिए सम्बोधन किया है जो अति आवश्यक है। स्व० ब्र० गोकुल प्रसाद जो मेरे पिता थे। स्व. पं० गोपालदासजी वरैयाके पास वे अध्ययनार्थ मोरेना गये थे। उनको एक नोटबुकमें गुरुजी द्वारा कथित कुछ गाथाएँ लिखो है । उनमें एक गाथा इस प्रकार भरहे पंचम काले जिणमुद्दाधार होई सगंथो । तव यरणसोल णासोऽणायारो जाई सो णिरये ।। अर्थात्-इस भरत क्षेत्रमें पञ्चमकाल में जिनमुद्रा ( निर्ग्रन्थमुद्रा) धारणकर पुनः वह मुनि सग्रन्थ ( सपरिग्रह ) होगा वह अपने तपश्चरण और शोलका नाश करेगा तथा ऐसा अनगार ( निर्ग्रन्थ ) नरकको प्राप्त करेगा। यह प्राचीन गाथा किसी प्राचीन ग्रन्थको है। ग्रन्थका नाम उसमें नहीं है 1 विद्वान् लेखकका कथन इस आगम-गाथाके अनुसार सर्वथा संगत है। सारे शिथिलाचारकी जड़ परिग्रहको स्वीकारता है और उसके मूलमें महिलाओं द्वारा संघ-संचालन भो एक जबरदस्त कारण है। इस

Loading...

Page Navigation
1 ... 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 ... 234