Book Title: Samyak Charitra Chintaman
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 11
________________ अष्टम अध्याय में बारह भावनाओं का सुन्दर चित्रण है, जो विशद है और श्रावक एवं साधुओंके लिये उपयोगी पाठ है। नवम अध्यायमें ध्यानका वर्णन है। दसवें में आर्यिकाओंके लिए विधि-विधान हैं। ग्यारहवें में सल्लेखनाका विधिवत् वर्णन है। __ गृहस्थाचार (देशव्रत ) का वर्णन १२वें प्रकाशमें किया गया है, जो अति संक्षेप रूप है। गृहस्थाचारका विशेष वर्णन होना चाहिये था, क्योंकि गृहस्थोंके लिए प्रतिपादित सभी ग्रन्थों में प्रायः १२ व्रत, उनके अतिचार और ११ प्रतिमाओंका संक्षिप्त विवरण हो पाया जाता है। इसका कुछ विशद वर्णन सागार-धर्मामृत और धर्मसंग्रह श्रावकाचारमें अवश्य है। आजको आवश्यकता है कि गृहस्थ के लिए गहस्थाचारका विशद वर्णन किया जाय । इससे गृहस्थोंका जो अज्ञान शिथिलाचार या अनाचार है, वह दूर होमा। दूसरे वर्तमानके बदले हुए जमाने में गृहस्थ अपना धर्म कैसे पालें, उसे मार्गदर्शन मिलेगा। डॉ. पन्नालालजोसे मेरा अनुरोध है कि वे गृहस्थाचारका विशद वर्णन करने वालो एक पुस्तक अलगसे लिख देखें। तेरहवें प्रकाशमें संयमासंयम-लब्धिका संक्षिप्त वर्णन है । इस प्रकार यह ग्रन्थ १३ प्रकाशों ( अध्यायों) में समाप्त हुआ है। अन्तमें परिशिष्ट जोड़ा गया है। इसमें वे विषय निबद्ध हैं, जो यथास्थान वर्णनमें छूट गए हैं या जिनका विशद वर्णन या स्पष्टीकरण आवश्यक समझा गया। डॉ० श्री पं० पन्नालालजो साहित्याचार्यका यह प्रयत्न और परिश्रम सफल होगा और पाठक इसे पढ़कर लाभ उठायेंगे इस आशाके साथ विराम लेता हूँ। अगन्मोहनलाल शास्त्री श्री महावोय उदासीन आश्रम कुण्डलगिरि सिद्धक्षेत्र पो० कुण्डलपूर ( दमोह ), म०प्र० ७-१०-१६८०

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