Book Title: Samyak Charitra Chintaman
Author(s): Pannalal Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 10
________________ पतिसे परम्पराका नाश हो रहा है और अनर्थ बढ़ रहे हैं । इस पर अंकुश लगे बिना शिथिलाचार दूर न होगा। श्वेताम्बर परम्पराके आचार-ग्रन्थों में भी ऐसा उल्लेख है कि आर्या ( साध्वी ) सौ वर्षको उम्रको हो, उसके समस्त अंग कुष्ठरोग द्वारा गलित हो चुके हों तो भी साधुको सरुले एकान्तमें बात भी न करना चाहिये। __ इस शिथिलाचारकी बढ़ती हुई प्रवृत्ति से अनेक साधु कूलरहोटर, पालको, वाहन आदिका भी उपयोग करने लगे हैं जो सर्वदा विपरीत है। इसका अन्त कहाँ होगा, यह चिन्तनीय हो गया है। साधुओं व आयिकाओंको बिना पादत्राणके पैदल ही विहार करनेकी आज्ञा है ई-सिमितिका पालन करते हुए, परन्तु पालकोका उपयोग करने वालेकी ईर्यासमिति कैसे सधेगी? इसपर भो चतुर्थ अध्यायके श्लोक १४, १५ में प्रकाश डाला गया है। ___ ब्रह्मचारी प्रतिमाधारो श्रावक भो निर्जीव सवारोका उपयोग करते हए भी सजोव सवारीका त्याग करते हैं। वे घोड़ा बैलगाड़ी, तांगा, मनुष्यों द्वारा खींचे जाने वाले रिक्शा का त्याग करते हैं क्योंकि इनसे पशुओं और मनुष्योंको कष्ट उठाना पड़ता है तब पालकीको कैसे साधुके लिए. ग्राह्य माना जा सकता है, जो चाय हाथ भूमि निरखकर पांव बढ़ाते एवं ईर्या समिति पालते हैं ? पञ्चम प्रकाशमें इन्द्रिय-विजय पर अच्छा प्रकाश डाला गया है। जनन-इन्द्रिय और रसना-इन्द्रिय' ये दो इन्द्रियाँ हो मनुष्यको बलवान हैं। जननेन्द्रियपर विजय प्राप्तकर ब्रह्मचर्यको स्वीकार करने वाले महा. पुरुषोंको रसना-इन्द्रियपर भो अंकुश लगाना चाहिए, यह नितान्त आवश्यक है। ___षष्ठ प्रकाशमें षडावश्यकोंका वर्णन है। इसमें एक जिन-स्तुतिम भगवान महाबोरकी स्तुतिमें नौ पद्य तथा चतुविशति स्तुतिके चौबीस पद्य बहुत सुन्दर रचे गये हैं। साधुओंके साथ ही श्रावकोंको प्रतिदिन पढ़ने के लिए बहुत उपयोगी हैं। इसो प्रकार प्रतिक्रमण आवश्यकका वर्णन करते हुए प्रतिक्रमण पाठकी भो नवीन रचना २५ पद्योंमें को है, जो बहुत उपयोगो है। सप्तम प्रकाश में पञ्चाचारका विशद वर्णन है। बोर्याचारका वर्णन करते हुए विविक्त शय्यासनमें अभ्रावकाश, आतापन योग तथा वर्षा योग इन तीन तपस्याओंके स्वरूपका यथोचित निदर्शन किया गया है।

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