Book Title: Samyak Charitra Chintaman Author(s): Pannalal Jain Publisher: Veer Seva Mandir Trust View full book textPage 8
________________ ( अ ) एकेन्द्रियके अंगोपांग नामकमका उदय नहीं होता इसे गो. कर्मकाण्डके एकेन्द्रिय जीवोंके उदय योग्य कर्मोंको सूची में पढ़िये । न केवल वनस्पतिमें किन्तु पृथिवी, जल, वायु, अग्नि इन सभी एफेन्द्रियोंमें अंगोपांग नामकर्मका उदय नहीं होता। इस स्थितिमें पत्र-फल आदिको वृक्ष, शरीरके अंग प्रत्यंग मानना सर्वथा आगम विरुद्ध है। (ब) अंगोपांग मनुष्यादिके टूट जानेपर फिर उत्पन्न नहीं होते, पर वृक्षोंके पत्र, फल, पुष्प प्रतिवर्ष अपनी ऋतु पर नए-नए होते हैं । अतः इसकी समता भी नहीं मिलती, बल्कि मनुष्य के पुत्र, पुत्री आदिको तरह ये भी पृथक् आत्मा व पृथक् शरीर वाले हो सिद्ध होते हैं। सभी आगम ग्रन्थोंमें उनमें पृथक-पृथक् जोव ही माना गया है। ( स ) यदि इसका वर्तमान विज्ञानको दृष्टिसे भी परोक्षण किया जाय तो पत्र-पुष्पादि पृथक् जीव हो सिद्ध होते हैं। कलकत्तामें सर जगदीशचन्द्र बसुको प्रसिद्ध वानस्पतिक विज्ञानशालामें अनेक जैन विद्वानोंकी उपस्थितिमें परोक्षण कराया गया। यह प्रयत्न मेरे आग्रह पर स्व. बाबू छोटेलाल जी सरावगी ( बेलगछिया) ने कराया था, जिससे एक घासक टुकड़े को तोड़कर मशीन फिटकर सो शरीर संचरण-क्रिया द्वारा स्पष्ट हो गया था कि टूट जाने पर भी इसमें जीव है। यद्यपि इसपर और भी प्रमाण व परीक्षण हैं तथापि यहाँ इतना ही स्पष्टीकरण पर्याप्त है। जिनागम को मान्यतानुसार अतिथि संविभाग ब्रतके अतिचारको व्याख्या भी आचार्य पूज्यपादने सर्वार्थ-सिद्धिमें 'सचित्त कमल पत्रादौ' पाद द्वारा कमलपत्र तथा आदि पदसे अन्य वृक्षों के टूटे पत्तोंको सचित्त हो माना है। डॉ० पन्नालाल जोने इन प्रमाणोंका संक्षेपमें उल्लेख ग्रन्थ में किया हो है। इस ग्रन्थ के तृतोय प्रकाशमें लेखकने वर्तमान शिथिलाचारसर भी प्रकाश डाला है । लिखा है कि (अ ) आर्यिका वृद्ध भी हो तो भी अकेली साधुको समोप न जाय, दो तीन मिलकर जाये और सात हाथ दूर रहकर हो धर्म-चर्चा करें। इस आचार संहिता का पालन करना चाहिये-श्लोक ८२, ८३। इस समय कई संघ साधुओंके ऐसे हैं, जिनमें इसका पालन नहीं होता। बल्कि उन संघोंका पूरा संचालन महिलाएं ही करती हैं।Page Navigation
1 ... 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 ... 234